पटना: Bihar के गोपालगंज के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया (Ji Krishnaiah) 5 दिसंबर 1994 को हाजीपुर से जब अपने जिले में जा रहे थे तब उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके साथ जो कुछ होने वाला है वो देख और सुनकर सारा देश स्तब्ध रह जाएगा।
वो अपनी सरकारी गाड़ी में थे। रास्ते में माफिया छोटन शुक्ला (Chhotan Shukla) के शव को लेकर भारी हुजूम सड़क पर जमा था। छोटन की मौत पुलिस की गोली से हुई थी। लिहाजा लोग गुस्से में थे।
लेकिन जी कृष्णैया (Ji Krishnaiah) को इस बात का पता नहीं था। जब भीड़ ने उनको घेरकर निशाना बनाने की कोशिश की तो उन्होंने बचाव में कहा कि वो तो केवल रास्ते से गुजर रहे हैं।
आनंद मोहन ने आग में घी डालने का किया काम
भीड़ मान भी जाती लेकिन मौके पर मौजूद आनंद मोहन (Anand Mohan) ने आग में घी डालने का काम किया। पहले भीड़ को जोशीला भाषण देकर पुलिस प्रशासन के खिलाफ कर दिया।
फिर जब भीड़ ने DM की गाड़ी को घेर रखा था तो उसने छोटन के भाई भुटकन से कहा- देखता क्या है, बदला ले लो। उसके बाद भुटकन ने DM के गले में गोली मारी और फिर उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। उसके बाद की कहानी रोंगटे खड़े करने वाली है।
लालू प्रसाद यादव भी रह गए सन्न
DM की नृशंष हत्या (DM Brutal Murder) ने पूरे देश को हिला दिया था। वारदात इतनी ज्यादा सनसनीखेज थी कि खुद CM लालू प्रसाद यादव मुजफ्फरपुर पहुंचे। उन्हें बताया गया था कि भीड़ ने DM को शिकार बनाकर जान से मार दिया है।
लेकिन जब सरकारी अस्पताल (Government Hospital) के चिकित्सकों ने लालू यादव को बताया कि DM को पहले गोली मारी गई और उसके बाद भीड़ ने उनको पत्थरों से निशाना बनाया। लालू भी सन्न रह गए।
बताते हैं कि हालात देखकर उन्होंने कहा कि Post Mortem Report सामने आने दो। तब तक इस बात को बाहर मत जाने दो। पुलिस को कहा कि वो सख्त से सख्त कदम उठाए।
भीड़ को आनंद मोहन ने उकसाया
छोटन को पुलिस ने शिकार बनाया था, ये बात पता लगते ही उसके समर्थक बेकाबू हो गए। चार दिसंबर की रात को ही छोटन के समर्थकों ने तमाम सरकारी वाहनों (Government Vehicles) को तहस नहस कर दिया गया। तमाम रास्तों को जाम कर दिया गया।
अगले दिन हालात उससे भी ज्यादा बेकाबू होते दिखे। छोटन के भाईयों ने फैसला किया कि वो उसके शव को लेकर 35 किमी दूर अपने पैतृक जिले वैशाली जाएंगे। छोटन के शव के साथ हजारों लोग थे।
अपनी पत्नी को सांसद बनाने के बाद आनंद मोहन का रुतबा उस समय चरम पर था। वो एंटी आरक्षण विरोधी मुहिम (Anti Reservation Campaign) चलाकर लालू यादव का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया था।
2007 के कोर्ट के फैसले के मुताबिक माफिया छोटन शुक्ला की शवयात्रा निकाल रहे लोगों से 5 दिसंबर 3.45 बजे आनंद मोहन खुद रूबरू हुआ था। उसकी पत्नी लवली आनंद भी साथ में थी।
माफिया अखलाक और अरुण कुमार सिन्हा (Mafia Akhlaq and Arun Kumar Sinha) भी साथ थे। आनंद ने भीड़ को उकसाने वाली बातें कहीं। उसके बाद जब डीएम जी कृष्णैया अपनी सरकारी गाड़ी से वहां से गुजरे तो आनंद ने छोटन के भाई से कहा कि ले लो बदला।
डीएम की मौत के बाद आनंद मोहन खुद भी रह गए सन्न
35 साल के DM की मौत के बाद आनंद खुद भी सन्न रह गया। उसको लगा कि ये बहुत ज्यादा गलत हो गया। वो तुरंत वहां से फरार हो गया। लेकिन मौके पर मौजूद लोगों की गवाही और पुलिस (Witness and Police) की जांच के बाद उसके गले में कानून का फंदा कुछ इस कदर फंसा कि वो जेल के भीतर पहुंच गया।
पुलिस ने आनंद मोहन और उसकी पत्नी समेत 36 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। बाद में 7 को दोषी मानकर 29 को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया। 2007 में कोर्ट ने उसे, अरुण और अखलाक को मौत की सजा सुनाई। लेकिन पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने उसे उम्र कैद में बदल दिया।