नई दिल्ली: आईएएनएस सी-वोटर तिब्बत सर्वे के अनुसार, भारत के लोग तिब्बत में मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के साथ संबंध खराब करने के लिए तैयार हैं।
यह बात इस सर्वेक्षण की सबसे महत्वपूर्ण खोज है।
लगभग दो-तिहाई भारतीय चीन के साथ बिगड़ते रिश्ते की कीमत पर भी तिब्बत के मुद्दे का समर्थन करना चाहते हैं।
चीन की ब्रांड इक्विटी पिछले एक साल में काफी कमजोर हुई है और अधिकांश भारतीय अपनी धारणाओं में चीन विरोधी बन गए हैं।
विडंबना यह है कि भारत के लोगों को ये पता नहीं है कि तिब्बत में मानव अधिकारों की क्या स्थिति है, इसलिए लोग कई चीजों से अनजान हैं लेकिन लोग चाहते हैं कि भारत सरकार इस पर कड़ा रुख अपनाए।
अधिकांश भारतीयों ने कहा कि वे तिब्बत में चीन द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में कुछ भी नहीं जानते, यह सर्वेक्षण के अनुसार चिंता का कारण होना चाहिए।
अन्य सर्वेक्षणों ने यह बताया कि अधिकांश लोग चीन के उईघुर क्षेत्र में मुसलमानों और हांगकांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में सामान्य रूप से जानते हैं, जो इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया कवरेज का संकेत देते हैं।
लेकिन ये भी देखने वाली बात है कि दुनिया तिब्बत के मुद्दे को उईघुर या हांगकांग की तरह पर्याप्त महत्व नहीं देते हैं।
कश्मीर के मुद्दे के विपरीत, ज्यादातर संगठन तिब्बत पर चुप हैं।
प्रत्येक तीसरे भारतीय को लगता है कि वे इस मोर्चे पर पर्याप्त नहीं कर रहे हैं।
दो-तिहाई उत्तरदाताओं ने दलाई लामा को आधुनिक भारत के एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया।
वास्तव में, लोगों की एक बड़ी संख्या दलाई लामा को एक भारतीय आध्यात्मिक नेता के रूप में मानती है, न कि एक विदेशी के रूप में।
एक तरफ, इसे समावेश करने की एक महान उपलब्धि माना जा सकता है, लेकिन दूसरी तरफ यह बताता है कि चीन के मोर्चे पर आक्रामक नहीं होने से दलाई लामा की तिब्बती ब्रांड पहचान कमजोर हो गई है।
इसलिए, लोगों की एक बड़ी संख्या दलाई लामा को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के सम्मान का समर्थन करती है।
यह भावना पिछले प्रश्नों में उत्तरदाताओं द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं का विस्तार है।
देश भर में 3,000 लोगों पर ये सर्वे किया गया।