उड़ीसा: उड़ीसा (Odisha) के पुरी में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की रथ यात्रा पिछले साल से धूमधाम से मनाया जा रहा है।
Corona की वजह से दो साल नहीं मनाई गई थी। हर साल आषाढ़ मास (Ashada Month) की द्वितीया तिथि के दिन रथयात्रा (Rath Yatra) शुरु होती है और पुरी में यह सबसे बड़े Festival में से एक है।
रथ यात्रा को देखने को बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। पुरी एकलौता ऐसा मंदिर है जहां भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है।
इस मंदिर के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। लेकिन कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को एक मजार के सामने आते ही रुक जाता है।
ऐसे में सवाल है कि आखिर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को मजार के सामने क्यों रोका जाता है और ऐसा करने के पीछे क्या कहानी है।
तो आज हम आपको रथ यात्रा के बारे में बताने के साथ ही बता रहे हैं कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Rath Yatra) को मजार के सामने रोकने के पीछे की क्या कहानी है।
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
कहा जाता है कि रथयात्रा से भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं।
इस वजह से पुरी में जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से 3 रथ रवाना होते हैं, इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथजी का रथ होता है।
मान्यता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे नगर देखने की इच्छा जाहिर की तो वो उन्हें भाई बलभद्र (Brother Balbhadra) के साथ रथ पर बैठाकर ये नगर दिखाने लाए थे।
कहा जाता है कि इस दौरान वो भगवान जगन्नाथ की अपने मौसी के घर गुंडिचा भी पहुंचे और वहां पर 7 दिन ठहरे थे।
अब पौराणिक कथा को लेकर रथ यात्रा निकाली जाती है।
मजार पर रुकता है भगवान का रथ
कहा जाता है इस रथ यात्रा के दौरान एक मजार पर भी भगवान का रथ रोका जाता है।
यह मजार Grand Road पर करीब 200 मीटर आगे है और जैसे ही ये रथ वहां से गुजरता है तो दाहिनी ओर एक मजार है, जहां यात्रा के समय रथ के पहिए खुद ब खुद रुक जाता है।
यहां कुछ देर रथ के रुकने के बाद फिर रथ आगे बढ़ता है।
मजार पर क्यों रोका जाता है?
अब जानते हैं आखिर भगवान जगन्नाथ के रथ को यहां क्यों रोका जाता है। इसके पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं।
कहा जाता है कि जहांगीर के वक्त एक सुबेदार ने ब्राह्मण विधवा महिला (Brahmin Widow) से शादी कर ली थी और उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सालबेग था।
मां हिंदू होने की वजह से सालबेग ने शुरुआत से ही भगवान जगन्नाथ पंथ का रुख किया।
सालबेग की भगवान जगन्नाथ के प्रति काफी भक्ति थी, लेकिन वो मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते थे।
रथ यात्रा में शामिल होने Odisha आए तो बीमार पड़ गए सालबेग
इस पौराणिक कथा में बताया जाता है कि सालबेग (Salbeg) काफी दिन वृंदावन भी रहा और रथ यात्रा में शामिल होने Odisha आए तो बीमार पड़ गए।
इसके बाद सालबेग ने भगवान को मन से याद किया और एक बार दर्शन की इच्छा जताई।
इस पर भगवान जगन्नाथ खुश हुए और उनका रथ खुद ही सालबेग की कुटिया के सामने रुक गई।
वहां भगवान ने सालबेग को पूजा की अनुमति दी। सालबेग को सम्मान देने के बाद ही भगवान जगन्नाथ का रथ आगे बढ़ा।
ऐसे में आज भी ये परंपरा चली आ रही है।
इसलिए मज़ार पर रुक जाता है रथ
इच्छा होते हुए भी वह भक्त मंदिर में दर्शन के लिए नहीं पहुंच पा रहा था और ऐसे में उसकी मृत्यु हो गई।
कहते हैं कि यह मज़ार जगन्नाथ जी के उसी मुस्लिम भक्त (Muslim Devotee) की है।
उसकी मृत्यु के बाद जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली गई तब रथ अचानक मज़ार पर रुक गया और कुछ समय के लिए आगे ही नहीं बढ़ा।
इसके बाद लोगों ने उस भक्त की आत्मा की शांति के लिए भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की और फिर रथ के पहिए आगे बढ़ें।
उस दिन से आज तक जब जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकलती है तो कुछ देर के लिए रथ को इस मज़ार में जरूर रोका जाता है।
आज इसे एक परंपरा के तौर पर निभाया जा रहा है।