नई दिल्ली : CJI DY चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) के सामने एक ऐसी याचिका आई जिसे देखकर वो खुद भी हैरत में पड़ गए।
दरअसल लेबर लॉ एसोसिएशन (Labor Law Association) ने एक रिट के जरिये सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देश में कुल 22 सेंट्रल गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल कम लेबर कोर्ट (CGIT-cum-LC,s हैं।
लेकिन इनमें से 9 में कोई प्रिजाइडिंग अफसर (Presiding Officer) ही नहीं है। 2023 के दौरान तीन और ट्रिब्यूनल्स में जगहें खाली होने वाली हैं।
LLA की ओर से पेश वकील ने कहा…
लेबर लॉ एसोसिएशन (Labor Law Association) का कहना था कि इन ट्रिब्यूनल्स का गठन कंपनियों और वहां काम करने वाले श्रमिकों से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए किया गया था।
इनमें श्रमिकों से जुड़े मामले काफी ज्यादा आते हैं। लेकिन जब वहां काम करने वाले लोग ही नहीं हैं तो किस तरह से ये मामलों का निपटारा कर सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा (CJI DY Chandrachud and Justice PS Narasimha) व जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपील पर संज्ञान लेकर ये फैसला किया।
LLA की ओर से पेश वकील ने कहा कि एक न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारियों में से एक का पद बुधवार को खाली होने वाला है।
अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल को भी याचिका की प्रति भेजें
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labor and Employment) को नोटिस जारी करते हुए CJI की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आप हमारे पास इतनी देर से क्यों आए हैं।
अधिकारी पांच जुलाई को सेवानिवृत हो रहे हैं। याचिका को सोमवार के लिए सूचीबद्ध करें। अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल (Solicitor General) को भी याचिका की प्रति भेजें।
देश में 22 इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल कम लेबर कोर्ट हैं
CJI की बेंच का कहना था कि हम किसी न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाने का एकतरफा आदेश पारित नहीं कर सकते।
CJI ने कहा कि प्रशासनिक दृष्टि से न्यायाधिकरणों में पदों को भरने की प्रक्रिया की निगरानी के लिए उन्होंने शायद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक जस्टिस को नामित किया है।
देश में 22 इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल (Industrial Tribunal) कम लेबर कोर्ट हैं। इन्हें केंद्रीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए वर्ष 1947 के औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था।