नई दिल्ली: PM मोदी (PM Modi) ने बीती ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ (‘My Booth Is The Strongest’) जनसभा के दौरान मध्य प्रदेश के भोपाल के BJP कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।
इसमें PM मोदी ने पूरे देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की बात भी कह दी। इसके बाद इस बात पर विवाद होना शुरू हो गया।
विपक्ष कर रहा तुष्टिकरण की राजनीति
PM मोदी ने यह भी दावा किया कि देश का विपक्ष समान नागरिक संहिता के खिलाफ है, क्योंकि वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद से पूरे देश में Common Civil Code यानी समान नागरिक संहित पर बहस शुरू हो चुकी है।
हालांकि इसको लेकर अभी तक मसौदा नहीं आया है लेकिन समाज के कई हिस्सों से तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
गौरतलब है कि जनसंघ के जमाने से ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता एजेंडे में रहा है। वहीं बीजेपी के गठन के बाद राम मंदिर का मुद्दा भी एजेंडे में शामिल कर लिया गया।
BJP ने 9 सालों में बहुत से नियम बदले
केंद्र में पीएम मोदी के इन 9 सालों के कार्यकाल में अनुच्छेद 370 और राम मंदिर का एजेंडा (Article 370 and Ram Mandir agenda) तो पूरा कर लिया गया है BJP अब समान नागरिक संहिता की ओर अपने कदम बढ़ाने का संकेत दे चुकी है।
हालांकि अब तक हुई बहस में इसके खिलाफ तर्क देने वाले लोगों का दावा है कि मोदी सरकार इसके जरिए सिर्फ मुसलमानों को निशाने पर लेना चाहती है।
उत्तराखंड में UCC लागू करने की तैयरी शुरू
वहीं उत्तराखंड में BJP सरकार इस कानून को लागू करने की दिशा में कई कदम आगे बढ़ा चुकी है।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने की तैयारी तकरीबन पूरी कर ली गई है। रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में कमेटी UCC का मसौदा भी तैयार हो चुका है।
मुस्लिम पक्ष विरोध में
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) UCC का विरोध जताते हुए कहा ‘समान नागरिक संहिता (UCC) भारत जैसे विशाल बहु-धार्मिक देश के लिए न तो उपयुक्त है और न ही उपयोगी है।
मुस्लिम बोर्ड (Muslim Board) ने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान में निहित धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। भारत एक बहु-धार्मिक देश है, और प्रत्येक नागरिक को अपने विश्वास और धार्मिक विश्वासों का अभ्यास करने और मानने की गारंटी है।
AIMPLB ने अपने 27वें सार्वजनिक सत्र के दूसरे और अंतिम दिन पारित एक प्रस्ताव में कहा, ‘इस दिशा में कोई भी प्रयास हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के खिलाफ है’।
गोवा में लागू हैं समान नागरिक संहिता
गोवा में 1867 का समान नागरिक कानून उसके सभी समुदायों पर लागू होता है, लेकिन कैथोलिक ईसाइयों और दूसरे समुदायों के लिए अलग नियम हैं।
जैसे कि केवल गोवा में ही हिंदू दो शादियां (Hindu Double Marriage) कर सकते हैं। 1962 का गोवा दमन और दीव प्रशासन अधिनियम लागू (Daman and Diu Administration Act came into force) हुआ, 1961 में गोवा के एक क्षेत्र के रूप में संघ में शामिल हुआ। इसके बाद गोवा राज्य को 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता को लागू करने की अनुमति दी गई।
समान नागरिक संहिता के तहत एक ऐसा कानून पारित किया गया जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह नहीं की जाएगी।
गोवा में ये कानून पति और पत्नी के साथ-साथ संतानों (लड़का-लड़की में भेद किए बिना) के बीच धन और आय के समान वितरण की अनुमति देता है।
कैसा है गोवा का माहौल ?
गोवा में इस कानून के मुताबिक जन्म, विवाह और मृत्यु (Birth, Marriage and Death) को स्वेच्छा से पंजीकृत किया जाना चाहिए। इस कानून के तहत तलाक के लिए कई प्रावधान हैं।
विवाह के दौरान पति या पत्नी की संपत्ति और धन को जोड़े का हक (पति और पत्नी ) माना जाता है। तलाक के मामले में प्रत्येक पति या पत्नी संपत्ति के आधे हिस्से के हकदार हैं। मृत्यु के मामले में जीवित पति या पत्नी को संपत्ति के स्वामित्व का आधा हिस्सा मिलता है।
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के अनुसार, भले ही बच्चों (पुरुष और महिला दोनों) ने शादी कर ली हो और घर छोड़ दिया हो। माता -पिता का तलाक होने पर बाकी के आधे हिस्से को उनके बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए।
इस तरह माता-पिता बच्चों को पूरी तरह से बेदखल नहीं कर सकते हैं, क्योंकि माता-पिता वसीयत में संपत्ति का केवल आधा हिस्सा ही ले सकते हैं। बाकी को कानूनी रूप से और बच्चों के बीच बराबर बांट देते हैं।
गोवा में शरीयत के हिसाब से नहीं होती है मुस्लिमों की शादी
गोवा में यूसीसी के मुताबिक खास स्थिति में हिंदुओं के लिए बहुविवाह का नियम है। लेकिन गोवा में रहने वाले मुसलमानों के लिए शरीयत को मानने का अधिकार तो है लेकिन शरीयत कानून के हिसाब से तीन शादियां करने का अधिकार नहीं है।
यहां पर शादी के मामले में मुसलमान शरीयत कानून के बजाय पुर्तगाली कानून और हिंदू कानून दोनों के अधीन हैं। यह कानून मुसलमानों में बहुविवाह को भी मान्यता नहीं देता है।
लेकिन एक हिंदू व्यक्ति दोबारा शादी कर सकता है अगर उसकी पत्नी 21 साल की उम्र तक गर्भधारण नहीं करती या 30 साल की उम्र तक मेल चाइल़्ड को पैदा नहीं करती।
मुसलमानों के लिए कैसा है ये नियम
गोवा में UCC कानून के मुताबिक मुसलमानों को भी अपनी शादी का पंजीकरण (Marriage Registration) कराना अनिवार्य है। इस कानून के तहत मुसलमानों को बहुविवाह और तीन तलाक में शामिल होने से प्रतिबंधित किया जाता है।
UCC के तहत गोवा में सभी धर्मों (कुछ धर्मों को छोड़कर) अपनी शादी का पंजीकरण कराना जरूरी है, और ये कानून मुसलमानों पर लागू होता है। इसके मुताबिक बहुविवाह और तीन तलाक में शामिल होने से रोकता है।
शादी , तलाक और जायदाद के मामले में लिंग भेद
शादी के मामले (Matrimonial Matters) में कैथेलिकों को भी ये कानून कुछ छूट देता है। ये कानून कैथेलिकों को विवाह पंजीकरण से छूट देता है साथ ही शादी को तोड़ने की स्थिति में कैथोलिक पुजारियों को कुछ अधिकार दिए गए हैं। बता दें कि गोवा संहिता के अनुच्छेद 1057 में विवाह के पंजीकरण का प्रावधान है।
कोई भी जोड़ा कैथोलिक सिविल रजिस्ट्रार (Catholic Civil Registrar) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करने के बाद चर्च में शादी कर सकते हैं। वहीं दूसरे धर्म के लोगों के लिए विवाह के प्रमाण के रूप में केवल विवाह का एक नागरिक पंजीकरण स्वीकार किया जाता है।
तलाक:
तलाक के मामले में भी ये कानून एक समान नही हैं। इस कानून के तहत एक आदमी अपनी पत्नी को कभी भी तलाक दे सकता है। लेकिन एक महिला केवल अपने पति की बेवफाई के आधार पर तलाक दे सकती है।
जायदाद :
संपत्ति के मामले (Property Matters) में पत्नी और पति संयुक्त रूप से मालिक हैं, लेकिन पति के पास संपत्ति को चलाने उसका इस्तेमाल करने का अधिकार है। कानून के मुताबिक पति अपनी पत्नी के मर्जी के खिलाफ घर नहीं बेच सकता।
इस कानून पर तर्क
पक्ष में
अब जब पूरे देश में UCC को लागू करने की बात की जा रही है तो ऐसे में इसके पक्ष और विपक्ष में बातें हो रही हैं।
जो इसके पक्षधर हैं उनका ये कहा है कि UCC पूरे देश में लैंगिक समानता की तरफ उठाया गया कदम होगा। इस कानून के पक्षधर इसे कानूनों को सरल बनाने वाला एक कानून मान रहे हैं।
तर्क ये भी है कि यह कानून धर्म या व्यक्तिगत कानूनों (Law Religion or Personal Laws) के आधार पर भेदभाव को खत्म करेगा। साथ ही ये भी तय करेगा कि कानून के तहत सभी को समान अधिकार और सुरक्षा दी जा सके।
विपक्ष में
जो लोग इस कानून के खिलाफ हैं, उनका ये कहना है कि ये कानून देश के धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं को खत्म कर देगा। यही वजह है कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर भारत में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों (Religious and Cultural Communities) के बीच आम सहमति का अभाव है।