नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को केंद्र सरकार को बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण (Caste-Based Survey) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (General Tushar Mehta) ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस.वी.एन भट्टी की पीठ से कहा, “मैं इस पक्ष या उस पक्ष में नहीं हूं। मैं अपनी दलीलें रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूं।”
पीठ ने दोहराया कि वह बिहार सरकार को जाति-आधारित सर्वेक्षण के नतीजे प्रकाशित करने से रोकने के लिए कोई अंतरिम निर्देश पारित नहीं करेगी।
याचिकाओं की सुनवाई 28 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई
पीठ ने उन याचिकाकर्ताओं से कहा, “जब तक प्रथम दृष्टया कोई मामला सामने नहीं आता, हम सर्वेक्षण पर रोक नहीं लगाएंगे।” याचिकाओं की सुनवाई 28 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई।
उल्लेखनीय है कि बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और जल्द ही इसे प्रकाशित किये जाने की उम्मीद है।
इससे पहले, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि सर्वेक्षण प्रक्रिया गोपनीयता कानून का उल्लंघन (Violation of Privacy Laws) करती है और देश में केवल केंद्र सरकार के पास जनगणना करने का अधिकार है। राज्य सरकार के पास बिहार में जाति-आधारित सर्वेक्षण के संचालन पर निर्णय लेने और अधिसूचित करने का कोई अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डेटा के प्रकाशन से व्यक्ति की निजता पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि व्यक्तियों का डेटा सामने नहीं आएगा, बल्कि पूरे डेटा का संचयी ब्रेकअप या विश्लेषण प्रकाशित किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने बार-बार सर्वेक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था, हालांकि यह तर्क दिया गया था कि राज्य सरकार द्वारा सर्वेक्षण प्रक्रिया के शेष भाग को तीन दिन के भीतर पूरा करने के लिए 1 अगस्त को अधिसूचना जारी करने के बाद याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी।
सर्वेक्षण कराने के फैसले को हरी झंडी दे
पटना उच्च न्यायालय ने 1 अगस्त को पारित अपने आदेश में कई याचिकाओं को खारिज करते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के सर्वेक्षण कराने के फैसले को हरी झंडी दे दी थी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार ने उसी दिन प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी।
इससे पहले, उच्च न्यायालय (High Court) ने सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था जो इस साल 7 जनवरी को शुरू हुआ था और 15 मई तक पूरा होने वाला था।
उच्च न्यायालय ने बाद में कई याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, “हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जिसे ‘न्याय के साथ विकास’ प्रदान करने के वैध उद्देश्य के साथ उचित क्षमता के साथ शुरू किया गया है।”