नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को कहा कि नई शिक्षा नीति में शिक्षा के माध्यम से कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि कला उत्सव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के सुझावों को भी शामिल किया गया है।
केंद्रीय मंत्री पोखरियाल ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा आयोजित कला उत्सव-2020 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि कला उत्सव और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विज़न “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की परिकल्पना साकार करते हैं।
कला उत्सव में स्वदेशी खिलौने की शुरुआत की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि यह “वोकल फ़ॉर लोकल” को बढ़ावा देता है।
इस अवसर पर स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग की सचिव अनीता करावल, एनसीईआरटी के प्रभारी निदेशक प्रो. श्रीधर श्रीवास्तव, एनसीईआरटी के सचिव मेजर हर्ष कुमार, कला उत्सव के ज्यूरी के सदस्य, इस उत्सव में भाग लेने वाले बच्चे, उनके अभिभावक, शिक्षक, शिक्षा मंत्रालय एवं अन्य राज्यों के अधिकारी और स्वायत्त संस्थानों के सदस्य भी उपस्थित थे।
कला उत्सव 2020 का शुभारंभ 10 जनवरी को डिजिटल मंच के माध्यम से ऑनलाइन किया गया था। इसमें कुल 35 टीमों ने भाग लिया।
इसमें राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, केंद्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय विद्यालय समिति से कुल 576 प्रतिभागियों ने अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
इन प्रतिभागियों में 290 छात्र एवं 286 छात्राओं ने जनपद और राज्यस्तर पर अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन से राष्ट्रीय कला उत्सव में सहभागिता सुनिश्चित की। इस कला उत्सव में चार दिव्यांग विद्यार्थियों ने भी भाग लिया।
कला उत्सव में प्रतिभागियों ने शास्त्रीय संगीत गायन, पारंपरिक लोक संगीत गायन, शास्त्रीय संगीत वादन, पारंपरिक लोक संगीत वादन, शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य, द्वि-आयामी दृश्य-कला, त्रि-आयामी दृश्य-कला, स्थानीय खेल-खिलौने, जैसी कलाओं में अपनी कला का प्रदर्शन किया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रत्येक विद्यार्थी में निहित रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर ज़ोर देती है। यह नीति, इस सिद्धांत पर आधारित है कि शिक्षा से व्यक्ति में ‘साक्षरता और संख्याज्ञान’ जैसी तार्किक और ‘समस्या समाधान’ संबंधी ‘संज्ञानात्मक तथा बुनियादी’ क्षमताओं का विकास होता है।
साथ ही साथ मनुष्य के जीवन में नैतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और भावनात्मक मूल्यों का भी विकास होता है।
उन्होंने कहा कि इस ‘कला उत्सव’ में शामिल ‘स्थानीय, पारंपरिक खेल-खिलौने’ एक ऐसी विधा है, जो भारत के आत्मनिर्भर भारत अभियान का पुरज़ोर समर्थन करती है।
इसमें बच्चे, न केवल अपने स्थानीय एवं पारंपरिक खेल-खिलौनों को बनाने की प्रक्रिया को व्यवहार में लाएंगे, बल्कि भविष्य में इससे उन्हें, इसी विधा को व्यवसाय के रूप में भी चुनने का अवसर मिलेगा।