तिरुवनंतपुरम : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने हस्तक्षेप करते हुए पिछले 38 वर्षों से चली आ रही शादी को खत्म करने का फैसला किया है। अदालत ने कहा कि जो विवाह पूरी तरह से टूट गया है, उसे बनाए रखना दोनों पक्षों के प्रति क्रूरता के समान होगा और इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
शीर्ष अदालत के एक फैसले के अनुसार अपरिवर्तनीय रूप से टूटने के बावजूद पक्षों को एक साथ रखना दोनों पक्षों के प्रति क्रूरता होगी।
अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट ने की याचिका दायर
हाईकोर्ट (High Court) ने महिला के पति की अपील के बाद यह फैसला लिया। पति ने पारिवारिक अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट (High Court) में याचिका दायर की थी।
पति ने दावा किया कि शादी पूरी तरह से टूट गई है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी पत्नी और दो बच्चों ने उनकी उपेक्षा की है और उन्हें अपने बेटे की शादी में भी आमंत्रित नहीं किया गया है।
हालांकि, प्रतिवादी ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया और कहा कि शादी में मामूली झगड़े को क्रूरता के रूप में नहीं माना जा सकता है।
फैमिली कोर्ट (Family court) ने आरोपों को तलाक देने के लिए किसी भी मानसिक या शारीरिक क्रूरता के रूप में नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी।
हालांकि High Courtने कहा कि 38 साल पुरानी शादी को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा…
कोर्ट ने कहा, “विवाह को बनाए रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है। इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।” न्यायालय (court) ने दोनों पक्षों के बीच विवाह को समाप्त कर दिया।