Navratri Fifth Day: 19 अक्टूबर यानी गुरुवार को नवरात्र का पांचवां दिन (Navratri Fifth day) है। आज मां दुर्गे के स्कंदमाता (Skandamata) रूप की पूजा की जाती है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
हिंदू धर्मशास्त्र (Hindu theology) के अनुसार, नवरात्र पूजन के पांचवे दिन का पुष्कल यानी अत्यंत पवित्र महत्व बताया गया है। साधक का मन समस्त लौकिक और सांसारिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां स्कंदमाता के स्वरूप में पूरी तरह रमा होता है।
मां के स्वरूप का विवेचन
हिंदू शास्त्र बताता है कि स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। देवी अपनी ऊपर वाली दायीं भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए हुए हैं और नीचे वाली दायीं भुजा में कमल पुष्प है।
ऊपर वाली बायीं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बायीं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी (Padmasana Devi) भी कहा जाता है।
सच्ची लगन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना को सर्वोत्तम माना जाता है।
इस प्रकार करें स्कंदमाता की पूजा
स्कंदमाता की पूजा के (Skandamata worship) समय लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और एक नारियल को बांधकर माता की गोद भर दें। स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। माता का यह स्वरूप ममता की मूर्ति, प्रेम और वात्सल्य का साक्षात प्रतीक हैं।
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रात: काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, इसके बाद मां का पूजन आरंभ करें एवं मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें।
पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें। चंदन लगाएं ,माता के सामने घी का दीपक (Ghee lamp) जलाएं। इसके बाद फूल चढ़ाएं व भोग लगाएं। मां की आरती उतारें तथा इस मंत्र का जाप करें।
इस मंत्र का शुद्ध भाव से करें उच्चारण
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।