नई दिल्ली: पद्मश्री से सम्मानित और 2014 रियो पैरालंपिक की रजत पदक विजेता दीपा मलिक ने टोक्यो में होने वाले ओलंपिक आयोजन के लिए ज्यादा से ज्यादा एथलीटों को प्रखर बनाने में एक अलग भूमिका निभाई है।
रियो से पहले, वह खेलों की दौड़ में खुद को तैयार करने में व्यस्त थीं, और अब उनके पास टोक्यो के लिए कमर कसने वाली पूरी भारतीय टीम दल की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, यह बहुत ही विडंबनापूर्ण है कि विकलांगता से योग्यता हासिल करने तक की यात्रा तब शुरू हुई, जब हर किसी ने मुझसे कहा कि मेरा जीवन एक कमरे में खत्म हो जाएगा।
मैं कभी भी कमरे से बाहर नहीं जा पाऊंगी। तब मैंने कहा कि मैं एक कमरे में बंद होकर नहीं रहूंगी और बाहर निकलकर रहूंगी। चाहे वह तैराकी हो, बाइक चलाना या रैलिंग करना हो, मैं हमेशा मैदान पर रहती थी।
लेकिन चेयरपर्सन पद की जिम्मेदारी ने मुझे वापस एक कमरे में बैठा दिया है। मुझे बाहर के कई लोग आकर मिलते हैं।
इसलिए चाहती हूं कि मैं अंदर रहकर बाहर वालों को कुछ दे सकूं।
वहां रहकर मैं उन्हें ऊपर उठाने के साथ और सशक्त बनाने में मदद कर सकती हूं।
एक एथलीट के रूप में करीबन दो दशक बिताने के बाद, उन्होंने एक अलग जिम्मेदारी निभाने का फैसला किया और फरवरी 2020 में भारत की पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष चुनी गईं।
दीपा ने ओलंपिक चैनल को खेल प्रशासन में शामिल होने के पीछे के कारणों पर कहा, मैंने ज्यादातर पदक अपने देश के लिए एक जिम्मेदार एथलीट के रूप में जीते हैं। मैंने एशियाई खेल, विश्व चैंपियनशिप जीती, रिकॉर्ड भी तोड़े और रियो में पैरालंपिक पदक जीता है। मैंने हमेशा खुद को खिलाड़ी से ज्यादा खेलों के लिए एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में माना है, जो एक बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। जब भी मैंने पदक जीता तो मुझे लगा कि मैं बदलाव ला सकती हूं। इसने मुझे कुछ नीतियों को बदलने और पैरा-खेल के लिए कुछ जागरूकता पैदा करने के लिए मजबूर करूंगी। इसके पीछे मेरा मकसद था कि खेल जरिये लोग कैसे विकलांगता के बावजूद सशक्त बन सकते हैं।
पीसीआई की चेयरपर्सन के रूप में खुद की भूमिका का उनके दिमाग में स्पष्ट खाका तैयार है। वह इसमें मिलने वाली चुनौतियों से भलीभांति परिचित हैं और उन्हें अपने माथे पर लेने के लिए भी तैयार हैं।
उन्होंने कहा, महासंघ एक सकारात्मक बदलाव ला रहा है और एक एथलीट-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ अपनी योजनाएं एथलीटों को केंद्र में रखते हुए तैयार कर रहा है। मुझे लगा कि मैं इसमें योगदान कर सकती हूं। खेल ने जो मुझे दिया, मैं इसके जरिये उसे वापस दे रही हूं। एक एथलीट के रूप में मैं कुछ बदलाव ला सकती हूं, फिर नेतृत्व करते हुए एक प्रशासक के रूप में भी। मैं एक एथलीट के रूप में अपने अनुभव के आधार पर निश्चित रूप से बड़ा योगदान दे सकती हूं – जैसे कि एथलीट क्या चाहते हैं और मैं उनकी आवाज बन सकती हूं।
उन्होंने आगे कहा, मुझे एक बार इस पद की पेशकश की जा रही थी, तो यह फासलों को मिटाने का एक अच्छा अवसर था। अगर महासंघ खुद प्रमुख भूमिका में एक एथलीट और एक ऐसे व्यक्ति को मौका देना चाहता है जो सबसे गंभीर विकलांगता की श्रेणियों से आता है, तो यह उन्हें और सिस्टम को संवेदनशील बनाता है, जो एथलीटों की जरूरत भी है।