Hemant Soren Birsa Munda Jail: झारखंड के पूर्व चीफ मिनिस्टर हेमंत सोरेन को अपनी गिरफ्तारी का बहुत पहले से अंदाज हो गया था। इसलिए उन्होंने आगे का सारा प्लान बहुत सोच-समझकर अंजाम तक पहुंचाया।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा को गड़बड़ी करने से रोकने में उनकी रणनीति कामयाब रही। अपनी कुर्सी गंवाने के बाद उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ सदस्य और जुझारू आदिवासी चेहरा चंपई सोरेन को आगे कर बड़ा सियासी मैसेज दे दिया।
BJP को हमले का नहीं मिल सका मौका
पारिवारिक विवाद से लेकर पार्टी के अंदर की खलबली को तो राजनीतिक चतुराई से ध्वस्त किया ही, भाजपा को भी असमंजस में डाल दिया।
किसी भी प्रकार के राजनीतिक हमले से दूर कर दिया। यही कारण है कि प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा नेतृत्व ने वर्तमान परिस्थिति में अपना हाथ जलाना उचित नहीं समझा क्योंकि इससे आदिवासी वोटो पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता था।
बिल्कुल इंटैक्ट रहे सत्ता पक्ष के सभी MLA
यह BJP को बेहतर तरीके से मालूम है कि सत्ता पक्ष यानी इंडिया गठबंधन के पास बहुमत का ठोस आंकड़ा है। विधायकों को तोड़ने-फोड़ने की कोई भी कोशिश कामयाब होना संभव नहीं है। 41 के बहुमत वाले सदन में सत्ता पक्ष के पास 47 विधायकों की एकजुटता है। ऐसी स्थिति में उसे सरकार बनाने से रोका नहीं जा सकता।
राज्यपाल को सौंपे गए पत्र में JMM विधायक सीता सोरेन, रामदास सोरेन, लोबिन हेंब्रम और चमरा लिंडा का हस्ताक्षर इसमें नहीं है। ये विधायक भी सत्ता पक्ष के साथ ही हैं। सीता सोरेन पहुंच चुकी हैं, वहीं लोबिन हेंब्रम चंपई के नाम पर मान गए हैं। रामदास सोरेन बीमार चल रहे हैं।
एक मनोनीत विधायक जोसेफ ग्लेन गॉलस्टिन विधायकों के साथ हैदराबाद में हैं। माले विधायक विनोद सिंह का भी समर्थन चंपई सोरेन को है। ध्यान दीजिए, भाजपा के पास 26, आजसू के पास तीन और निर्दलीय सरयू राय, अमित यादव और एनसीपी के कमलेश सिंह को मिला कर एनडीए के पास 32 विधायक ही हैं। ऐसे में सरकार बनाने को लेकर की जाने वाली कोई भी कोशिश हास्यास्पद ही कही जाएगी।
BJP के पास वेट एंड वॉच के अलावा कोई चारा नहीं
अभी वेट एंड वाच के अलावा बीजेपी के पास कोई चारा नहीं है। पार्टी की नजर चंपई सरकार पर है। सरकार के अंतर्विरोध के बाद ही हमले के मौके मिल सकते हैं। सरकार में मंत्रिमंडल के बंटवारे से लेकर या दूसरा कोई विवाद सामने आता है, तो बीजेपी सरकार को घेरेगी। चंपई सोरेन सरकार का कार्यकाल 11 महीने का है। अब अगले विधानसभा चुनाव के बारे में सोचना ही बेहतर है।