Supreme Court Orders on Election: देश के अलग-अलग हिस्सों में लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) का आगाज हो चुका है।
तो आइए इस चुनावी माहौल के बीच आज हम देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के द्वारा दिए गए कुछ ऐसे फैसलों के बारे में बताते हैं जिसके कारण चुनाव (Election) की दशा और दिशा बदल गई है।
ये फैसले लोकतंत्र (Democracy) की मजबूती के लिए भी अहम साबित हुए हैं।
प्रधानमंत्री और स्पीकर के चुनाव की स्क्रूटनी पर रोक (1975)
आजादी के बाद से अदालतों द्वारा चुनावों को लेकर दिए गए फैसलों की बात करें तो जून, 1975 में आये इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के एक फैसले का बार-बार जिक्र होता है।
इस फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के रायबरेली सीट (Raibareli Seat) से निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया था। इसके बाद इंदिरा सरकार ने देश में आपातकाल (Emergency) लगा दिया था।
इस फैसले के खिलाफ Supreme Court में अपनी अपील के पेंडिंग रहने के दौरान संसद में 39 वां संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) किया गया था जिसने अदालतों को प्रधानमंत्री और स्पीकर के चुनाव की स्क्रूटनी (Scrutiny Of Elections) करने से रोक दिया था।
Supreme Court ने नवंबर, 1975 में हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए Indira Gandhi के चुनाव को बरकरार रखा था लेकिन आंशिक रूप से 39 वें संविधान संशोधन को रद्द कर दिया था।
मतदाताओं को दिया नोटा का विकल्प (2013)
सितंबर 2013 में supreme Court ने मतदाताओं के सामने नन ऑफ़ द एबव (NOTA) का विकल्प रखा था। अदालत ने कहा था कि किसी भी मतदाता के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में खड़े किए गए उम्मीदवारों को खारिज कर सके।
अदालत ने कहा था कि अगर जनता उम्मीदवारों को खारिज करेगी तो इससे एक बदलाव होगा और यह राजनीतिक दलों को मजबूर करेगा कि वह लोगों की इच्छाओं का सम्मान करें और ऐसे लोगों को चुनाव मैदान में उतारें जो ईमानदार हों।
पिछले कुछ सालों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के दौरान लोगों ने बड़े पैमाने पर NOTA का बटन दबाया है।
VVPAT के इस्तेमाल करने का आदेश (2013)
अक्टूबर, 2013 में सुब्रमण्यन स्वामी (Subramanian Swamy) के मामले में Supreme Court ने चुनाव आयोग (Election Commission) से चरणबद्ध तरीके से वैरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी (VVPAT) का इस्तेमाल करने के लिए कहा।
हालांकि चुनाव आयोग शुरुआत में इसके लिए तैयार नहीं था। लेकिन अदालत ने अपने अहम फैसले में कहा था कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि पेपर ट्रेल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए बेहद जरूरी है और मतदाताओं का भरोसा केवल पेपर ट्रेल को लागू करके ही करके जीता जा सकता है।
अदालत ने कहा था कि EVM के साथ VVPAT सिस्टम होने से ही यह पता चलेगा कि हमारी मतदान व्यवस्था कितनी सटीक है।
चुनाव आयुक्तों का चयन (2023)
मार्च, 2023 में Supreme Court की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्तों का चयन तीन सदस्यों का एक पैनल करेगा। इस पैनल में प्रधानमंत्री (Prime Minister) , विपक्ष के नेता (Opposition Leader) और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) शामिल होंगे।
लेकिन 2023 में ही केंद्र सरकार ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक कानून बनाया। इस कानून में पिछली बार पैनल में शामिल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की जगह केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) को रखा गया।
12 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस नए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने दो निर्वाचन आयुक्तों के चयन में किसी भी तरह का दखल देने से इनकार किया।
लेकिन अदालत ने केंद्र सरकार को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में जल्दबाजी करने को लेकर फटकार भी लगाई थी।
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को किया रद्द
Supreme Court की पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) को रद्द कर दिया था और राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों के नाम गुप्त रखने को असंवैधानिक ठहराया था।
यहां बताना होगा कि केंद्र सरकार साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना लेकर आई थी। इसके जरिए कोई भी शख्स या कोई कॉरपोरेट समूह किसी भी राजनीतिक दल को जितनी मर्जी चाहे चुनावी फंडिंग कर सकता था।
Electoral Bond पर आए कोर्ट के फैसले के बाद आम लोगों को पहली बार इस बात का पता चला कि किस राजनीतिक दल को किसने कितना पैसा Electoral Bond के जरिए दिया।
एयरटेल, मेघा, फ्यूचर गेमिंग, क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड, हल्दिया एनर्जी लिमिटेड और वेदांता जैसी नामी कंपनियों ने 4000 करोड़ से ज्यादा के बॉन्ड खरीदे थे।
चुनाव आयोग ने बताया था कि Future Gaming, मेघा इंजीनियरिंग और क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड Electoral Bond के टॉप 3 डोनर्स हैं।