Jharkhand High Court: कदाचार के एक मामले में सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने अपने फैसले में कहा है कि अनुशसानात्मक कार्यवाही में सजा देने से पहले परिस्थितियों के साथ-साथ कदाचार की गंभीरता ध्यान में रखना जरूरी है।
इसके साथ ही अदालत ने CRPF के हवलदार समलेंद्र कुमार की सजा कम करने का निर्देश देते हुए सेवा पर बहाल करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस डॉ. SN पाठक की अदालत ने यह निर्देश दिया। इस संबंध में प्रार्थी समलेंद्र कुमार (Samalendra Kumar) ने याचिका में कहा था कि उन्होंने अपनी मां की बीमारी के कारण सक्षम प्राधिकारी से छुट्टी स्वीकृत कराई थी।
छुट्टी खत्म होने के बाद याचिकाकर्ता ने उस दिन रिपोर्ट नहीं की, जिस दिन उसे रिपोर्ट करनी थी। इस आधार पर उनको सेवा से बर्खास्त किया गया।
प्रार्थी के अनुसार छुट्टी की अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन देते हुए कहा था कि उसकी मां का स्वास्थ्य और भी खराब हो गया है और वह पीलिया से भी पीड़ित हैं, लेकिन उनके अनुरोध पर कोई विचार नहीं किया गया।
प्रतिवादी का कहना था कि प्रार्थी के आवासीय पते पर कई पत्र भेजे गए, लेकिन याचिकाकर्ता उपस्थित नहीं हुए। गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया गया। इसके बाद एक पक्षीय कार्रवाई करते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
इस मामले की सुनवाई कर रहे हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डॉ एसएन पाठक के कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता छुट्टी की अवधि से अधिक समय तक मजबूरी में रुका। उसके सामने ऐसी परिस्थिति आ गई थी।
हालांकि कर्मचारी का कर्तव्य है कि छुट्टी की अवधि समाप्त होने के बाद तुरंत ड्यूटी पर उपस्थित हो, लेकिन दंड देने से पहले कदाचार के प्रमुख कारण और अन्य सभी प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी से याचिकाकर्ता की अनधिकृत अनुपस्थिति का आरोप साबित कर दिया है, साथ ही जांच अधिकारी ने खुद अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि याचिकाकर्ता ने छुट्टी की अवधि बढ़ाने के लिए विधिवत अनुरोध किया था।
इस बात का भी उल्लेख किया गया था कि छुट्टी की अवधि के विस्तार को सक्षम प्राधिकारी ने खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ता को Duty पर रिपोर्ट करने के लिए सूचित किया गया था।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता ने छुट्टी से अधिक समय तक जानबूझकर नहीं रुका, बल्कि जो परिस्थिति थी वह उसके नियंत्रण से बाहर थी। इसलिए सेवा बर्खास्तगी की सजा निश्चित रूप से कदाचार की प्रकृति के अनुरूप नहीं थी।