Supreme Court : अश्लील सामग्री के निर्माण में बच्चों के उपयोग पर देश की शीर्ष अदालत ने चिंता जताई है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने Madras High Court के फैसले को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठनों (जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन अलायंस ऑफ फरीदाबाद और नयी दिल्ली स्थित बचपन बचाओ आंदोलन) की अपील पर फैसला सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं।
दोनों संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं।
CJI चंद्रचूड़ क अध्यक्षता वाली Supreme Court की पीठ ने कहा, हो सकता है कि एक बच्चे का अश्लील सामग्री देखना अपराध नहीं हो, लेकिन अश्लील सामग्रियों के निर्माण में बच्चों का इस्तेमाल किया जाना अपराध हो सकता है और यह गंभीर चिंता का विषय है।’
मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि केवल बाल अश्लील सामग्री डाउनलोड करना और देखना बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण (POCSO) अधिनियम तथा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) कानून के तहत अपराध नहीं है।
शीर्ष अदालत ने बाल अधिकार निकाय राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को मामले में हस्तक्षेप करने और 22 अप्रैल तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने की अनुमति दी।
CJI ने कहा, ‘बहस पूरी हो गई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। Supreme Court ने 11 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को भयावह करार दिया था, जिसमें कहा गया है कि बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री (Child Pornography) को केवल डाउनलोड करना और उसे देखना पॉक्सो अधिनियम और IT कानून के तहत अपराध नहीं है। हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाई करने के लिए भी उच्च न्यायालय राजी हो गया था।
हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द भी कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप लगाया गया था।
दो संगठनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील HS फुल्का ने उच्च न्यायालय के फैसले से असहमति जताई और POCSO अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया। पीठ ने कहा कि यदि किसी को इनबॉक्स में ऐसी सामग्री मिलती है तो संबंधित कानून के तहत जांच से बचने के लिए उसे हटा देना होगा या नष्ट कर देना होगा।
पीठ ने कहा कि अगर कोई बाल अश्लील सामग्री को नष्ट न करके सूचना प्रौद्योगिकी प्रावधानों का उल्लंघन करना जारी रखता है तो यह एक अपराध है। कथित क्लिप 14 जून 2019 को उसके पास आई थी।
उच्च न्यायालय ने आरोपी को बरी कर दिया था और आरोपी के वकील ने कहा कि सामग्री उसके व्हाट्सऐप पर ऑटोमेटिकली डाउनलोड हो गई थी।
इससे पहले Madras High Court ने कहा था कि आजकल के बच्चे अश्लील सामग्रियां देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को वैसे बच्चों को दंडित करने के बजाय शिक्षित करने को लेकर पर्याप्त परिपक्वता दिखानी चाहिए।
अदालत ने 28 वर्षीय एस हरीश के खिलाफ कार्यवाही भी निरस्त कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था।
कोर्ट ने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ऐसी सामग्री को केवल देखने को अपराध नहीं बनाता है।