Bombay High Court : बम्बई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने एक व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है, जो जुर्माना अदा न कर पाने के कारण अपनी सजा पूरी करने के बाद भी जेल में था।
अदालत ने कहा कि उसे पूरी अतिरिक्त सजा भुगतने के लिए बाध्य करना “न्याय का उपहास” होगा।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने 27 जून के फैसले में कहा कि “कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने” के लिए व्यक्ति को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए। आदेश की एक प्रति शुक्रवार को उपलब्ध करायी गई।
अदालत ने उस व्यक्ति को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, जो उसे दी गई सजा पूरी करने के बाद भी जेल में बंद है। वह निचली अदालत द्वारा उस पर लगाए गए जुर्माने (Fines) का भुगतान न कर पाने के कारण अतिरिक्त सजा काट रहा था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि न्याय के साथ-साथ उदारता भी नैतिक गुणों के दो शिखरों में से एक है। अदालत ने कहा, “न्याय कोई कृत्रिम गुण नहीं है, लेकिन उदारता इसमें अनिवार्य रूप से शामिल है।”
इसमें कहा गया है कि कानून इस सिद्धांत को मान्यता देता है कि ‘‘पीड़ा के समय दया उचित है, जैसे सूखे के समय बारिश के बादल।’’
अदालत सिकंदर काले नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवायी कर रही थी, जिसे 2019 में कोल्हापुर में 14 आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया था। 2017 में गिरफ्तारी के बाद से वह हिरासत में था।
काले को सभी मामलों में दो साल की सजा सुनायी गई थी और उसकी सजा एकसाथ चलनी थी। मजिस्ट्रेट ने उस पर 2,65,000 रुपये का जुर्माना लगाया और राशि जमा न करने पर अतिरिक्त सजा सुनायी।
काले ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपनी सजा पूरी कर ली है, लेकिन चूंकि वह गरीबी के कारण जुर्माना भरने में सक्षम नहीं है, इसलिए उसे नौ साल की अतिरिक्त अवधि के लिए जेल में रहना पड़ सकता है। व्यक्ति ने अपनी अतिरिक्त सजा में कमी का अनुरोध किया।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखता है और अपनी सजा पूरी होने के बाद भी जेल में ही है, क्योंकि वह जुर्माने की राशि का इंतजाम नहीं कर पाया।
अदालत ने कहा, ‘‘यदि उसे पूरी अतिरिक्त सजा काटने का निर्देश दिया जाता है, तो उसे नौ साल की अतिरिक्त अवधि के लिए जेल में रहना होगा, जो हमारे विचार में न्याय का उपहास होगा।”
पीठ ने कुछ मामलों में याचिकाकर्ता पर लगाये गए जुर्माने की राशि को कम कर दिया और कहा कि जुर्माना न चुकाने के कारण उसे पहले से ही जो सजा काटनी पड़ी है, उसे अतिरिक्त सजा माना जाएगा।
पीठ ने कहा कि काले को 2020 में ही रिहाई मिलनी चाहिए थी, क्योंकि उसे दी गई सजा पूरी हो गई थी, लेकिन जुर्माना न चुका पाने के कारण उसे 2024 तक जेल में रहना पड़ा।
अदालत ने कहा कि जुर्माना “कोई छोटी राशि नहीं बल्कि 2,65,000 रुपये की भारी राशि थी।”