Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने UP के मदरसा शिक्षा बोर्ड (Madrasa Education Board) अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हुए मदरसों के संचालन के अधिकारों की पुष्टि की।
कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम राज्य की उस जिम्मेदारी के अनुरूप है, जो यह तय करती है कि मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षा का स्तर ऐसा हो जो छात्रों को समाज में सक्रिय रूप से भाग लेने और जीविकोपार्जन में सक्षम बनाए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम संगठनों और धार्मिक नेताओं ने स्वागत किया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली (Rashid Farangi Mahali) ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह अधिनियम असंवैधानिक नहीं हो सकता क्योंकि इसके जरिए से हजारों लोग जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि अब मदरसे बिना किसी बाधा के स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं।
मौलाना काब रशीदी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया आभार
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भी फैसले की तारीफ की और कहा कि मदरसों ने देश को IAS, IPS, मंत्री और राज्यपाल जैसे अहम पद के विराजमान अधिकारी दिए हैं। उन्हें संदेह की नजर से देखना सहीं नहीं है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना काब रशीदी (Kaab Rashidi) ने इसे एक बड़ा संदेश बताया है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आभार मानते हएु उसका स्वागत किया। CJI D. Y. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोई कानून तभी असंवैधानिक माना जा सकता है जब वह संविधान के भाग-3 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो। उन्होंने साफ कहा कि यह कानून राज्य की विधायी क्षमता के अंतर्गत आता है और उच्च न्यायालय ने इसे धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन मानने में गलती की थी।
हालांकि, कोर्ट ने फ़ाज़िल और कामिल जैसी डिग्रियों पर अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक माना क्योंकि ये डिग्रियां यूजीसी अधिनियम के तहत आती हैं, जो उच्च शिक्षा को नियंत्रित करती है।
इन प्रावधानों को संविधान के केंद्रीय अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के कारण राज्य की विधायी सीमा से बाहर करार दिया। इस फैसले ने मदरसा अधिनियम को संवैधानिक मान्यता देते हुए, मदरसों को स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्रदान करने का अधिकार तय किया है, जबकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यूजीसी के अधिकार क्षेत्र की भी पुष्टि की।