Right Over Husband’s Property?: हिन्दू महिलाओं को पति की संपत्ति (Husband’s Property) पर कितना अधिकार? इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट जल्द करने जा रहा है।
Supreme Court के न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की पीठ ने सोमवार को इस मामले को एक बड़े पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया, ताकि इस मुद्दे का समाधान हमेशा के लिए किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा हर हिन्दू महिला, उसके परिवार और देशभर के विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों के अधिकारों से जुड़ा हुआ है।
लाखों हिन्दू महिलाओं के लिए इस निर्णय का गहरा प्रभाव पड़ेगा
सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू महिला को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति अधिकारों के व्याख्याओं की उलझन को सुलझाने का फैसला किया है, जो कि छह दशकों से लंबित एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है।
प्रश्न यह है कि क्या एक हिन्दू पत्नी अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व अधिकार रखती है, भले ही वसीयत में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हों?
यह सवाल केवल कानूनी बारीकियों का नहीं है, बल्कि लाखों हिन्दू महिलाओं (Hindu Women) के लिए इस निर्णय का गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह निर्णय यह तय करेगा कि क्या महिलाएं अपनी संपत्ति का उपयोग, हस्तांतरण या बिक्री बिना किसी हस्तक्षेप के कर सकती हैं।
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) ने हिन्दू महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देने के लिए एक प्रगतिशील कदम उठाया था, लेकिन धारा 14(2) में कुछ अपवाद दिए गए थे।
इसमें यह कहा गया था कि वसीयत या उपहार में दी गई संपत्ति स्वचालित रूप से पूर्ण स्वामित्व में नहीं बदल सकती। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने इस विभाजन को स्वीकार करते हुए कहा कि तुलसम्मा के बाद दो विचारधाराएं विकसित हुई हैं।
एक जो हिन्दू महिलाओं को अधिकार देने की ओर है और दूसरी संपत्ति अधिग्रहण के तरीके और हस्तांतरण के तरीके को देखकर विचार करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इस विषय पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है। अब एक बड़ी पीठ को यह निर्णय लेना होगा कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें हिन्दू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को धारा 14(1) के तहत सीमित कर सकती हैं या नहीं।