नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता पाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है।
सरकार ने यह बात समलैंगिक जोड़ों द्वारा अपनी पसंद के साथी से विवाह करने को मौलिक अधिकार के दायरे में लाने की मांग वाली एक याचिका के जबाव में कही।
केंद्र ने हलफनामे में कहा है, आईपीसी की धारा 377 को वैध करने के बावजूद याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार की तरह लागू कराने का दावा नहीं कर सकते।
अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का विस्तार कर इसमें समलैंगिक विवाहों के मौलिक अधिकार को शामिल नहीं किया जा सकता।
इसमें आगे कहा गया है, भारत में शादी केवल दो व्यक्तियों के मिलन का विषय नहीं है, बल्कि एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल महिला के बीच एक अहम बंधन है।
केंद्र ने आगे कहा कि पार्टनर के रूप में एक साथ रहना और समान-लिंग के लोगों के साथ यौन संबंध बनाने की तुलना पति, पत्नी और बच्चों वाले भारतीय परिवार से नहीं की जा सकती।
ऐसे में देश की संसद द्वारा बनाए गए कानूनों में कोई हस्तक्षेप करना निजी कानूनों के नाजुक संतुलन के लिए भयावह साबित होगा।
केंद्र ने यह भी कहा कि भारत में शादी को एक संस्कार के रूप में माना जाता है और यह सदियों पुराने रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को लिए हुए है।
ऐसे में समलैंगिक व्यक्तियों का विवाह इन सब चीजों का भी उल्लंघन करेगा। लिहाजा, इस याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए।