लखनऊ : दुष्कर्म के झूठे आरोप में 20 साल जेल में बिताने वाले विष्णु तिवारी के पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों को लेकर नेशनल हयूमन राइट्स कमीशन (एनएचआरसी) ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।
एनएचआरसी ने यह भी पूछा है कि सरकार इन सालों में क्या कर रही थी और सेंटेंस रिव्यू बोर्ड ने उसके मामले का आंकलन क्यों नहीं किया।
एनएचआरसी को अपनी जांच में यह भी पता चला है कि यह सीआरपीसी की धारा 433 के गैर-अनुप्रयोग का मामला लगता है, जिसके तहत सरकार उन कैदियों की जल्द रिहाई की समीक्षा करती है, जिन्हें स्वास्थ्य, अच्छे आचरण और विभिन्न कारणों से रिहाई पाने के योग्य होते हैं।
ऐसे में इस मामले पर रिव्यू न किया जाना स्पष्ट रूप से सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की असक्रियता को दर्शाता है।
अब आयोग ने उप्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में उनका जवाब मांगा है।
आयोग ने अपने पत्र में कहा है, इस मामले में जिम्मेदार लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और पीड़ित के लिए राहत और पुनर्वास के कदम उठाकर उसके साथ हुए अन्याय की भरपाई होनी चाहिए।
जो कि उसने इतने सालों के दौरान मानसिक पीड़ा और सामाजिक कलंक के तौर पर झेला।
इस बीच शुक्रवार को जेल से रिहा हुए विष्णु को कई सरकारी अधिकारियों ने मदद की पेशकश की है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने ललितपुर के जिला मजिस्ट्रेट अनवि दिनेश कुमार को सरकारी योजनाओं के तहत विष्णु को सभी तरह की सहायता देने के लिए कहा है।
अब अधिकारी उन्हें राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाभ देने के लिए जुटे हुए हैं।
ललितपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने संवाददाताओं से कहा, विष्णु को सभी सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। यह काम एक हफ्ते में हो जाएगा।
बता दें कि विष्णु तिवारी को 16 सितंबर 2000 को एससी/एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें ललितपुर की अदालत ने दुष्कर्म का दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
20 साल बाद सामने आया कि वह निरपराध था।