नई दिल्ली: भारत इस समय कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर की चपेट में हैं। जिस तेजी से ये महामारी फैल रही है, उससे तो स्थिति कंट्रोल से बाहर दिख रही है।
इस समय जिन कोरोना संक्रमितों में लक्षण नहीं दिख रहे या जिनकी स्थिति गंभीर नहीं है उन्हें घर पर ही क्वारंटाइन रहने का सुझाव दिया गया है।
भारत में कुल 1.55 करोड़ लोग कोरोना संक्रमित हैं और सक्रिय मामले 2 लाख 31 हजार 977 हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “चुनौती बहुत बड़ी है, हमें दृढ़ संकल्प, साहस और तैयारी के साथ इसे दूर करना होगा।
डॉ.प्रमेश ने कहा कि यदि आपका ऑक्सीजन लेवल ठीक है और किसी प्रकार का कोई लक्षण या दिक्कत नहीं है तो दवा के लिए केवल ‘पैरासिटामोल’ ही काफी है।
उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं ये भी पढ़ने को मिल रहा है कि कोरोना मरीज को बुडसोनाइड से फायदा होता है। अगर यह दवा मरीज सूंघे करे तो उसकी रिकवरी तेज होती है।
लेकिन इससे मृत्यु दर घटने वाली कोई बात गलत है।
वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि इस तरह की दवाएं मृत्यु दर में कोई मदद नहीं करतीं और फेवीपिराविर/ इवरमेक्टिन के पीछे भागने से कोई लाभ नहीं होने वाला।
इन दवाओं के लिए होड़ मचाना अपना समय बर्बाद करने के सिवा और कुछ नहीं है। डॉ. प्रमेश ने बताया कि रेमडेसिविर बहुत हद तक मदद नहीं करती और यह सभी मरीजों पर काम भी नहीं करती।
कुछ ही मरीज होते हैं जिन पर यह दवाई काम करती है। लेकिन अगर किसी के ऑक्सीजन का स्तर काफी गिर गया है और वह सांस लेने की स्थिति में नहीं है या वेंटिलेटर पर है तो भी इसका असर नहीं होता।
यह दवा शुरू में मरीज को रिकवर करने में मदद करती है लेकिन लोगों के मृत्यु दर को तो बिल्कुल नहीं घटाती। टोसिलीजुमैब भी ऐसी दवा है जो बहुत कम लोगों पर असर करती है।
वहीं कई अध्ययनों में प्लाज्मा को भी फायदेमंद नहीं बताया गया है।
डॉ. प्रमेश ने बताया कि डॉक्टर को तय करने दीजिए कि आपको रेमडेसिविर या टोसिलीजुमैब या किसी और दवा की जरूरत है। डॉक्टर पर ये दवाएं लिखने का दबाव मत डालिए।