चतरा: प्रखण्ड के डाढ़ा में किसान सब्जी फसलों की खेती ड्रिप के साथ मल्चिंग विधि से कर रहे हैं। किसान प्रकाश कच्छप अपने एक एकड़ भूमि पर खीरे की खेती मल्चिंग विधि से कर रहा है।
मल्चिंग का प्रत्यक्षण स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र चतरा के वरीय वैज्ञानिक डाॅ. रंजय कुमार सिंह एवं इंजीनियर विनोद कुमार पाण्डेय की देख रेख में आरंभ की गई है।
चतरा जिले के हिसाब से करीब सात हजार रुपए में 5 कट्ठा में मल्चिंग हो सकती है एवं लागत एवं लाभ का अनुपात सामान्यतः खेती की तुलना में दोगुनी की वृद्धि होती है।
गुणवत्ता भी बेहतर रहती है प्लास्टिक मल्चिंग से सब्जियों की खेती में दूसरा सबसे बडा फायदा यह है कि इसमें खरपतवार नहीं आती है। इससे किसान का निराई गुराई का खर्च बच जाता है।
सबसे पहले ऊंची डोलियां बना लेते हैं। उसके बाद उस प्लास्टिक शीट बिछाते हैं। उसमें निर्धारित दूरी पर छेद कर बीज या पौध का रोपण किया जाता है।
इसमें पानी संरक्षित रहता है। पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता है। इससे पानी की बचत हो जाती है।
पानी की 70 से 80 प्रतिशत की बचत होती है। तीन से चार दिनों तक पानी नहीं देना पड़ता है।
प्लास्टिक मल्चिंग से सब्जियों की खेती में सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पानी की बचत हो जाती है। करीब 65 फीसदी से अधिक पानी कम देना पड़ता है।
इसके चलते किसानों को पानी की परेशानी नहीं भुगतनी पड़ती है। एक बार मल्चिंग से तीन फसल की खेती हो सकती है। उपज में करीब दोगुनी की वृद्धि होती है।