नई दिल्ली: कोरोना इससे दुनिया में हर कोई परेशान है। कोरोना शब्द सुनाते ही दुख का अहसास खुद ब खुद होने लगता है।
कोरोना की ये लहर भी बीत जाएगी, लेकिन लाखों लोगों की जिंदगी शायद पहले जैसी नहीं हो सकेगी।
अपनों को खोने की पीड़ा को समझा जा सकता है, लेकिन महामारी ने कई परिवारों को इसतरह तोड़ा है, जिसकी शायद ही उन्होंने कभी कल्पना की हो।
मनोवैज्ञानिक तक कहने लगे हैं कि इस महामारी का दुख कुछ अलग ही है।
मनोवैज्ञानिक का कहना है, कि किसी अपने को खोने का नुकसान सिर्फ एक नुकसान नहीं।
इससे जुड़ी कई और चीजें भी है। आर्थिक नुकसान समेत कई और दूसरी चीजें भी हैं।
दुनिया भर में बीमारी एक चिंता का विषय बन गई है।
कोरोना के कारण अचानक से इसतरह से लोगों की मौत हो गई जिनकी सेहत ठीक थी और कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था।
अचानक बिना किसी बीमारी के कोरोना की वजह से जान चली जाए इससे लोगों का दुख और भी अधिकबढ़ जा रहा है।
कोरोना महामारी में कुछ लोग खुद को ही दोषी मानने लगे हैं। कोरोना के दौर में कई लोग अपने चाहने वाले को अंतिम वक्त में भी देख नहीं पाए।
यह ऐसा दुख है जो उनके साथ लंबे समय तक रहेगा। मनोचिकित्सक का कहना है कि कई परिवार ऐसा सामना कर रहे हैं। उन्हें दुख है, गुस्सा है।
यह उनकी बेचैनी को और बढ़ा रहा है। मनोचिकित्सक डॉ. एन रंगराजन का कहना है कि कोरोना से अचानक से होने वाली मौत से परिवारों पर गहरा असर पड़ रहा है।
इस महामारी में लोग असहाय नजर आ रहे हैं। किसी के परिवार में कोई बीमार पड़ रहा है,तब इसका डर सताने लग रहा है कि उसे इलाज नहीं मिल पाएगा।
कहीं ऑक्सिजन, बेड न मिला तो कोई अनहोनी न हो जाए।
पहले कोई यदि किसी बीमारी से भले न बच पाया हो लेकिन परिवारवालों को इस बात का संतोष रहता था कि उसे बेहतर इलाज दिला सके।