वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को यहां कृषि कानूनों के विरोध में सियासत को लेकर विपक्ष पर जमकर प्रहार किया।
उन्होंने कहा कि दशकों का छलावा किसानों को आशंकित करता है। लेकिन, अब छल से नहीं गंगाजल जैसी पवित्र नीयत के साथ काम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि पहले सरकार का फैसला पसंद नहीं आने पर विरोध होता था। लेकिन, बीते अब विरोध का आधार फैसला नहीं बल्कि आशंकाओं को बनाया जा रहा है।
भारत के कृषि उत्पाद पूरी दुनिया में मशहूर हैं। क्या किसान की इस बड़े मार्केट और ज्यादा दाम तक पहुंच नहीं होनी चाहिए? अगर कोई पुराने सिस्टम से ही लेनदेन ही ठीक समझता है तो, उस पर भी कहां रोक लगाई गई हैं।
नए कृषि सुधारों से किसानों को नए विकल्प और नए कानूनी संरक्षण दिए गए हैं। पहले मंडी के बाहर हुए लेनदेन ही गैरकानूनी थे।
अब छोटा किसान भी, मंडी से बाहर हुए हर सौदे को लेकर कानूनी कार्यवाही कर सकता है। किसान को अब नए विकल्प भी मिले हैं और धोखे से कानूनी संरक्षण भी मिला है।
सरकारें नीतियां बनाती हैं, कानून-कायदे बनाती हैं। नीतियों और कानूनों को समर्थन भी मिलता है तो कुछ सवाल भी स्वभाविक ही है। ये लोकतंत्र का हिस्सा है और भारत में ये जीवंत परम्परा रही है।
लेकिन, पिछले कुछ समय से एक अलग ही ट्रेंड देश में देखने को मिल रहा है। पहले होता ये था कि सरकार का कोई फैसला अगर किसी को पसंद नहीं आता था तो उसका विरोध होता था।
लेकिन, बीते कुछ समय से हम देख रहे हैं कि अब विरोध का आधार फैसला नहीं बल्कि आशंकाओं को बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अप्रचार किया जाता है कि फैसला तो ठीक है। लेकिन, इससे आगे चलकर ऐसा हो सकता है।
जो अभी हुआ ही नहीं, जो कभी होगा ही नहीं, उसको लेकर समाज में भ्रम फैलाया जाता है। कृषि सुधारों के मामले में भी यही हो रहा है। ये वही लोग हैं जिन्होंने दशकों तक किसानों के साथ लगातार छल किया है।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो घोषित होता था लेकिन, एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी।सालों तक एमएसपी को लेकर छल किया गया।
किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्जमाफी के पैकेज घोषित किए जाते थे। लेकिन, छोटे और सीमांत किसानों तक ये पहुंचते ही नहीं थे।यानि कर्जमाफी को लेकर भी छल किया गया।
किसानों के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं घोषित होती थीं। लेकिन, वो खुद मानते थे कि 1 रुपये में से सिर्फ 15 पैसे ही किसान तक पहुंचते थे। यानि योजनाओं के नाम पर छल होता था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब इतिहास छल का रहा हो, तब दो बातें स्वभाविक हैं। पहली ये कि किसान अगर सरकारों की बातों से कई बार आशंकित रहता है तो उसके पीछे दशकों का इतिहास है।
दूसरी ये कि जिन्होंने वादे तोड़े, छल किया, उनके लिए ये झूठ फैलाना मजबूरी बन चुका है कि जो पहले होता था, वही अब भी होने वाला है।
उन्होंने कहा कि जब इस सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखेंगे तो सच अपने आप सामने आ जाएगा। हमने कहा था कि हम यूरिया की कालाबाजारी रोकेंगे और किसान को पर्याप्त यूरिया देंगे।
बीते छह साल में यूरिया की कमी नहीं होने दी। यहां तक कि लॉकडाउन तक में जब हर गतिविधि बंद थी, तब भी दिक्कत नहीं आने दी गई।
उन्होंने कहा कि हमने वादा किया था कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुकूल लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देंगे। ये वादा सिर्फ कागजों पर ही पूरा नहीं किया गया, बल्कि किसानों के बैंक खाते तक पहुंचाया है।
सिर्फ दाल की ही बात करें तो 2014 से पहले के 5 सालों में लगभग साढ़े 6 सौ करोड़ रुपये की ही दाल किसान से खरीदी गईं।
लेकिन, इसके बाद के 5 सालों में हमने लगभग 49 हजार करोड़ रुपये की दालें खरीदी हैं यानि लगभग 75 गुना बढ़ोतरी हुई।
उन्होंने कहा कि 2014 से पहले के पांच सालों में पहले की सरकार ने 2 लाख करोड़ रुपये का धान खरीदा था।
लेकिन, इसके बाद के 5 सालों में 5 लाख करोड़ रुपये धान के एमएसपी के रूप में किसानों तक हमने पहुंचाए हैं।
यानि लगभग ढाई गुणा ज्यादा पैसा किसान के पास पहुंचा है। 2014 से पहले के 5 सालों में गेहूं की खरीद पर डेढ़ लाख करोड़ रुपये के आसपास ही किसानों को मिला।
वहीं हमारे 5 सालों में 3 लाख करोड़ रुपये गेहूं किसानों को मिल चुका है यानि लगभग 2 गुना।
प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन के दौरान सवाल पूछा कि अब आप ही बताइए कि अगर मंडियों और एमएसपी को ही हटाना था, तो इनको ताकत देने, इन पर इतना निवेश ही क्यों करते?
हमारी सरकार तो मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आपको याद रखना है, यही लोग हैं जो पीएम किसान सम्मान निधि को लेकर ये लोग सवाल उठाते थे।
ये लोग अफवाह फैलाते थे कि चुनाव को देखते हुए ये पैसा दिया जा रहा है और चुनाव के बाद यही पैसा ब्याज सहित वापस देना पड़ेगा।
एक राज्य में तो वहां की सरकार, अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते आज भी किसानों को इस योजना का लाभ नहीं लेने दे रही है।
देश के 10 करोड़ से ज्यादा किसान परिवारों के बैंक खाते में सीधी मदद दी जा रही है। अब तक लगभग एक लाख करोड़ रुपये किसानों तक पहुंच भी चुका है।
उन्होंने कहा कि मुझे एहसास है कि दशकों का छलावा किसानों को आशंकित करता है। लेकिन, अब छल से नहीं गंगाजल जैसी पवित्र नीयत के साथ काम किया जा रहा है।
आशंकाओं के आधार पर भ्रम फैलाने वालों की सच्चाई लगातार देश के सामने आ रही है। जब एक विषय पर इनका झूठ किसान समझ जाते हैं, तो ये दूसरे विषय पर झूठ फैलाने लगते हैं।
जिन किसान परिवारों की अभी भी कुछ चिंताएं हैं, कुछ सवाल हैं, तो उनका जवाब भी सरकार निरंतर दे रही है। मुझे विश्वास है, आज जिन किसानों को कृषि सुधारों पर कुछ शंकाएं हैं, वो भी भविष्य में इन कृषि सुधारों का लाभ उठाकर, अपनी आय बढ़ाएंगे।