हॉन्गकॉन्ग: कोरोना वायरस के खिलाफ बनी फाइजर वैक्सीन लगाने वाले लोगों में उन लोगों के मुकाबले एंटीबॉडी की अधिकता देखी गई, जिन्होंने चीन में बनी साइनोवैक वैक्सीन को लगवाया था। ये खुलासा एक नए शोध में हुआ है।
द साउथ चाइना मॉनिर्ंग पोस्ट ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट में बताया कि हॉन्गकॉन्ग विश्वविद्यालय (एचकेयू) के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन का उद्देश्य समय के साथ प्राकृतिक संक्रमण की घटनाओं और संक्रमण व टीकाकरण के कारण जनसंख्या प्रतिरक्षा के स्तर का अनुमान लगाना था।
रिपोर्ट में कहा गया, एंटीबॉडी की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि वैक्सीन किसी व्यक्ति की सुरक्षा के लिए काम कर रही है।
हालांकि, कोरोनावायरस की पहचान और उसे बेअसर करने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पन्न प्रोटीन की मात्रा का सीधे तौर पर प्रतिरक्षा के स्तर से कोई संबंध नहीं है।
एचकेयू में महामारी विज्ञान के प्रमुख शोधकर्ता बेंजामिन काउलिंग के हवाले से टीडब्ल्यूटी ने कहा, जिन लोगों को साइनोवैक वैक्सीन प्राप्त हुआ है, उन्हें तीसरे बूस्टर शॉट की भी आवश्यकता हो सकती है।
अध्ययन में एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया को ट्रैक करने के लिए 1,000 लोगों को शामिल किया था, जिन्होंने टीके की एक या दोनों खुराकें ली हैं।
1 जून को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आपातकालीन उपयोग के लिए साइनोवैक-कोरोनावैक कोविड-19 वैक्सीन को अधिकृत किया था। दो खुराक वाला सिनोवैक-कोरोनावैक उत्पाद एक निष्क्रिय टीका है।
इसकी आसान भंडारण आवश्यकताएं इसे बहुत प्रबंधनीय बनाती हैं और विशेष रूप से कम-संसाधन सेटिंग्स के लिए उपयुक्त बनाती हैं।