नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 124 ए की संवैधानिकता को चुनौती दी है।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून का इस्तेमाल पत्रकारों को डराने, चुप कराने और दंडित करने के लिए राजद्रोह अपराध का इस्तेमाल बेरोकटोक जारी है।
जब तक इस प्रावधान को आईपीसी से हटा नहीं दिया जाता, यह अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी के अधिकार की पूर्ण प्राप्ति को “परेशान और बाधित” करना जारी रखेगा। यह याचिका पत्रकार पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन ने लगाई है।
ज्ञात रहे कि सुप्रीम कोर्ट में ये पांचवी याचिका दाखिल की गई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा था कि इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने आजादी के अभियान को दबाने के लिए किया था।
असहमति की आवाज को चुप करने के लिए किया था। महात्मा गांधी और तिलक पर भी ये धारा लगाई गई।
क्या सरकार आजादी के 75 साल भी इस कानून को बनाए रखना चाहती है? इसके अलावा राजद्रोह के मामलों में सजा भी बहुत कम होती है।
राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली पूर्व सैन्य अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करने पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया था।
याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति पर ‘डरावना प्रभाव’ डालता है और यह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है।