भोपाल: मध्यप्रदेश में कांग्रेस की एकजुटता के चलते वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर लगभग डेढ़ दशक बाद सत्ता में आ पाई थी, मगर आपसी टकराव ने महज 15 माह में उसके हाथ से सत्ता छीन ली।
अब कांग्रेस विपक्ष में है और फिर बड़े नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच दूरियां बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं।
राज्य में कांग्रेस की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण गुटबाजी रहा है, मगर कमलनाथ के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद बीते तीन साल के कांग्रेस के हाल पर गौर किया जाए तो गुटबाजी लगातार कम नजर आने लगी है।
इस दौरान भले ही कांग्रेस को एक अपने बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को खोना पड़ा है, सिंधिया भाजपा में हैं और मोदी सरकार में मंत्री भी हैं। उसके बाद भी कांग्रेस खुले तौर पर एक दिखती है।
वर्तमान में कांग्रेस कमलनाथ की छाया में ही आगे बढ़ रही है, परंतु बीते कुछ समय में कमलनाथ के केंद्र की राजनीति में जाने की चल रही चर्चाओं के बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रदेश में सक्रियता बढ़ गई है।
वे कई इलाकों का दौरा कर चुके हैं, सड़क पर उतरकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं और लगातार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख रहे हैं। सिंह की इस बढ़ी सक्रियता के सियासी मायने भी खोजे जा रहे हैं।
कमलनाथ की नजदीकी सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बढ़ी सक्रियता से कमलनाथ खुश नहीं हैं, क्योंकि कमलनाथ जब दिल्ली में थे तब दिग्विजय सिंह ने आंदोलनों का नेतृत्व किया।
यही कारण है कि कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के भाई और कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह की पर्यावरण पर केंद्रित पुस्तक के विमोचन पर चुटकी ली थी और कहा था कि, अगर दिग्विजय सिंह पर किताब लिखते तो वह सबसे ज्यादा बिकती।
कांग्रेस के ही लोग मानते हैं कि अगर सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी है तो उसकी बड़ी वजह दिग्विजय सिंह रहे हैं और कांग्रेस के सत्ता गवाने के पीछे की बड़ी वजह दिग्विजय सिंह हैं, तो वहीं भाजपा भी इस मामले में दिग्विजय सिंह पर हमले करने से नहीं चूकती।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने दिग्विजय सिंह पर तंज कसते हुए भी कहा, कमलनाथ की सरकार गिराने का श्रेय दिग्विजय सिंह को ही जाता है, और आपको इस पर फक्र है। लेकिन ये कांग्रेस के संस्कार हैं, भाजपा के नहीं। हमें शिवराज जी के नेतृत्व में अपनी सरकार पर गर्व है और हम जनकल्याण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आपके गोरख धंधे बंद हो गए, इसलिए पीड़ा होना स्वाभाविक है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि, राज्य में अगर दिग्विजय िंसंह और कमल नाथ के बीच बढ़ती दूरी खुलकर सामने आती है तो पार्टी आगामी उप-चुनाव, नगरीय और पंचायत चुनाव में बड़ा नुकसान उठाएगी।
वर्तमान में कमल नाथ ने कांग्रेस को एक जुट रखने में सफलता पाई है, मगर कई नेता अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं और यही कारण है कि पार्टी को नुकसान पहुंचाने से लेकर नेताओं को नुकसान पहुंचाने वाले बयान आ रहे हैं।