नई दिल्ली: देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ‘दो बच्चों की नीति लाने की कोई योजना से मोदी सरकार ने साफ इंकार कर दिया है।
शुक्रवार को लोकसभा में केंद्र सरकार ने सवाल के जवाब में इसकी जानकारी दी। मोदी सरकार ने ऐसी कोई नीति ना लाने के पीछे कई वजहें गिनाई हैं।
लोकसभा सांसद उदय प्रताप सिंह ने स्वास्थ और परिवार कल्याण मंत्रालय से इस बारे में सवाल किया था।
जवाब में राज्य मंत्री डॉ भारती पवार ने कहा कि सरकार का ऐसा कोई विचार नहीं है। मंत्री ने अपने जवाब में चार मुख्य वजहें गिनाई हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे का हवाला देकर मोदी सरकार ने कहा कि अब वांछित प्रजनन दर घटकर 1.8 हो गई है। मतलब औसतन हर जोड़ा 1.8 बच्चे चाहता है।
दूसरी वजह जनसंख्या और विकास को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय समझौते को बताया गया है, जो भारत को परिवार नियोजन में जबर्दस्ती से रोकती है। तीसरी वजह दुनियाभर से मिले अनुभव हैं।
मोदी सरकार का कहना है कि जबर्दस्ती करने से जनसांख्यिकीय विसंगतियां होती हैं, जैसे लिंग के आधार पर गर्भपात, लड़कियों का त्याग और उनकी भ्रूण हत्या। चौथी वजह के रूप में कुछ राज्यों का उदाहरण दिया गया है।
केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों ने बिना कोई सख्त प्रावधान लागू किए प्रजनन दर कम किए हैं।
सांसद सिंह ने सरकार से पूछा था कि क्या वह बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए कोई नीति बनाने की सोच रही है।
उन्होंने अपने सवाल में ऐसी नीति की बात की जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। इसके अलावा दो बच्चों की नीति से जुड़ा कोई प्रस्ताव है या नहीं, यह भी सवाल था।
अगर ऐसी कोई नीति नहीं लाने का विचार है तो उसकी वजहें क्या हैं, सांसद यह भी जानना चाहते थे।
सरकार ने अपने जवाब में ‘राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम’ का जिक्र कर कहा कि इसी के जरिए सभी नागरिकों को धर्म या संप्रदाय से परे, मुक्त भाव से फैसला करने का अधिकार है।
केंद्र ने ‘मिशन परिवार विकास’ का उदाहरण भी दिया जिसके जरिए सबसे ज्यादा प्रजनन दर वाले 146 जिलों में कॉन्ट्रासेप्टिव्स और परिवार नियोजन की सेवाएं मुहैया कराई गई हैं।
कॉन्ट्रासेप्टिव्स को लेकर कुछ योजनाओं का ब्यौरा देकर केंद्र ने कहा कि आशा वर्कर्स उनकी होम डिलिवरी करती हैं।