पटना: कोरोना महामारी के बीच बिहार में मौतों से जुड़े आंकड़ों में बड़ा अंतर सामने आया है।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में कोरोना की शुरुआत से यानी मार्च 2020 से मई 2021 तक सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) के तहत पिछले वर्षों की तुलना में 2 लाख 51 हजार से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं, जबकि राज्य में कोरोना से मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 5163 है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, संकट के समय हुईं कुल मौतों और आम हालात में हुई अपेक्षित मौतों की तुलना में मिले अंतर को एक्सेस मोर्टेलिटी कहा जाता है।
बिहार में सीआरएस के तहत दर्ज अत्याधिक मौतों की संख्या कोविड-19 के आधिकारिक आंकड़ों से 48.6 फीसदी ज्यादा है।
आंकड़ों के विश्लेषण के लिए महामारी से पहले के समय (जनवरी 2015 से फरवरी 2020) तक के सीआरएस डेटा का औसत निकाला गया था।
महामारी की शुरुआत के पहले की चार साल की अवधि (2015-2019) की तुलना में कोविड-19 की शुरुआत के बाद से 2 लाख 51 हजार 53 ‘अधिक मौतें’ हुई थीं।
इनमें से 1 लाख 26 हजार ऐसी अधिक मौतें 2021 के शुरुआती पांच महीनों में दर्ज की गई थीं, जबकि, इस अवधि में कोविड-19 से मौत की संख्या 3 हजार 766 थी।
इसी तरह कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी आंकड़ों का विश्लेषण कर अलग-अलग राज्यों में मौत के आंकड़ों की गणना की जानकारी दी थी।
आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से ऐसे अनुमान सामने आए थे।
केरल में यह अंतर 0.42 था, जबकि उत्तर प्रदेश में यह संख्या 43 गुना थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अनुमान लगाया है कि कोविड-19 मौतों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से दो-तीन गुना ज्यादा हो सकती है।
इसके अलावा सीआरएस के आंकड़ों में इजाफे का कारण देश में मौतों के आंकड़े पंजीकृत होने में सुधार भी है।
रिपोर्ट में सीआरएस 2019 ‘वाइटल स्टेटिस्टिक्स’ पर वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, जब देश में केवल 20.7 फीसदी मौतें ही चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित थीं, तो भारत में मौतों का पंजीकरण सुधरकर 90 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है।
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा है कि वे सीआरएस डेटा पर टिप्पणी नहीं कर सकते, लेकिन कोविड-19 से संबंधित सभी मौतें डीएम और सिविल सर्जन की तरफ से सत्यापित हैं।