खूंटी: विश्व हिंदू परिषद के न्यासी और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष पद्म विभूषण कड़िया मुंडा ने अश्रुपूरित नेत्रों से अपने मित्र और बाबरी विध्वंस के नायक पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के श्रद्धांजलि दी।
तोरपा के विधायक कोचे मुंडा और अन्य लोगों ने कड़िया मुंडा के साथ कल्याण सिंह के निधन पर और शांति हवन यज्ञ और गरीबों के बीच अन्नदान देकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम में जनजातीय समाज सैकड़ों पाहनों कि अलावा ग्रामीण शामिल हुए। हवन और शांतिपाठ के बाद स्वामी दयानंद अन्नपूर्णा योजना के तहत खाद्य सामग्री का वितरण किया गया।
कल्याण सिंह के व्यक्त्त्वि और कृतित्व को स्मरण करते हुए कड़िया मुंडा ने कहा कि जननायक कल्याण सिंह सही मायने में राम सेवक थे।
कल्याण सिंह ने राजनीति में अपनी एक अलग छवि बनाई थी। कई लोगों को उनकी विचारधारा पसंद नहीं आती थी, लेकिन फिर भी उन्हें उनके विरोधी एक दिग्गज नेता के रूप में मानते थे।
राम मंदिर आंदोलन में तो उनकी ऐसी सक्रियता रही कि उन्हें अपनी सीएम कुर्सी तक कुर्बान करनी पड़ गई थी।
कड़िया मुंडा ने कहा कि आनेवाली पीढ़ी वर्षों तक कल्याण सिंह के योगदान को याद रखेगी।
मुंडा ने कहा कि 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे।
उनकी बदौलत यह आंदोलन यूपी से निकला और देखते-देखते पूरे देश में बहुत तेजी से फैल गया।
उन्होंने हिंदुत्व की अपनी छवि जनता के सामने रखी। इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी साथ मिला, जिससे आंदोलन ने और जोर पकड़ लिया।
उन्होंने कहा कि कल्याण सिंह शुरू से आरएसएस के जुझारू कार्यकर्ता थे। इसका पूरा फायदा यूपी में भाजपा को मिला और 1991 में यूपी में भाजपा की सरकार बनी थी।
कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा के पास पहला मौका था जब यूपी में भाजपा सबल और भाजपा के लिए बहुमत से सरकार बनी थी।
जिस आंदोलन की बदौलत भाजपा ने यूपी में सत्ता पाई, उसके सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे, उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज दिया गया।
कल्याण सिंह के कार्यकाल में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। कल्याण सिंह के शासन में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस हो गया।
कड़या मुंडा ने कहा कि यह ऐसी घटना थी, जिसने भारत की राजनीति को एक अलग ही दिशा दे दी। इसके बाद केंद्र से लेकर अन्य सरकारों की जड़ें हिल गईं।
कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली और छह दिसंबर 1992 को उन्होंने तात्कालीन प्रधानमंत्री से स्पष्ट कह दिया कि कहा गोली नही चलाऊंगा।
ये शब्द उन्होंने तीन बार जोर देकर कहा और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद उनका कद और बढ़ गया।
कल्याण सिंह का गोरक्षा पीठ से गहरा नाता था। महंत अवैद्यनाथ से उनका खास स्नेह था।
कड़िया मुंडा ने कहा कि हमने अपना एक सबल नायक और साथी खो दिया, उन्हें प्रभु राम अपनी शरण में स्थान दें।
मौके पर डॉ निर्मल सिंह, आर्य समाज रांची से राजेन्द्र आर्य, विमलेंद्र शास्त्री, जयकिशोर शास्त्री, भाजपा के जिलाध्यक्ष चन्द्रशेखर गुप्ता, मुसाफिर विश्वकर्मा, सनिका पाहन, गंदौरी गुड़िया, पूनम भेंगरा, नीरज पाढ़ी, गौंझू प्रधान सहित काफी संख्या में लोगों ने कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दी।