नई दिल्ली: महामारी कोरोना के घातक वायरस तो शिकार लोगों को इसके ठीक होने के बाद भी थकान और सांस लेने में तकलीफ की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
यह बात एक चीनी शोध में सामने आई है। यह शोध कोविड 19 महामारी के स्वास्थ्य पर लंबे समय के असर के समझने के लिए हुआ है।
आखिर क्यों अधिक लोग कोरोना से ठीक होने के बाद अब भी इसके लक्षणों से ग्रस्त हैं।
एक शोध के अनुसार अस्पताल से कोविड 19 का इलाज कराकर छुट्टी पाए करीब आधे लोगों को एक साल बाद भी थकान जैसी समस्याएं आ रही हैं।
रिसर्च में कहा गया है कि कोविड 19 से ठीक होने के एक साल के बाद भी कई लोगों में सांस लेने की तकलीफ की समस्या सामने आ रही है।
शोध में यह भी पाया गया है कि अधिकांश लोगों को कोरोना से पूरी तरह ठीक होने में एक साल से अधिक का समय लगा है।
अमेरिकी सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार कोविड 19 होने के बाद की स्थिति को लॉन्ग कोविड भी कहा जा सकता है।
इसमें लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद नई या चल रही स्वास्थ्य समस्याएं लंबे समय तक रहती हैं।
इसे पोस्ट-एक्यूट कोविड-19 या लॉन्ग टर्म कोविड या क्रोनिक कोविड के रूप में भी जाना जाता है।
अमेरिका के सीडीसी के अनुसार जिन लोगों को गंभीर कोरोना संक्रमण हुआ है, वे भी इस बीमारी के बाद हफ्तों या महीनों तक लक्षणों के साथ लंबे समय तक मल्टीऑर्गन प्रभाव या ऑटोइम्यून स्थितियों से प्रभावित हो सकते हैं।
मल्टीऑर्गन प्रभाव शरीर को सबसे अधिक प्रभावित कर सकते हैं। अगर सभी अंगों को नहीं तो हृदय, फेफड़े, गुर्दे, त्वचा और मस्तिष्क के कार्यों को यह प्रभावित कर सकता है।
ज्यादातर बच्चे भी कोरोना संक्रमण के दौरान या उसके तुरंत बाद मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस) से प्रभावित हो सकते हैं।
यूरोपियन ऑब्जर्वेटरी ऑन हेल्थ सिस्टम्स एंड पॉलिसीज के प्रोफेसर मार्टिन मैकी ने 25 फरवरी, 2021 को कहा था कि लंबे समय तक कोरोना बेहद कमजोर करने वाला हो सकता है और लोगों के जीवन पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव हो सकता है।
उनका कहना था, कई लोग काम पर लौटने या सामाजिक जीवन जीने में असमर्थ हैं।
कई लोगों ने बताया है कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है। जैसे ही उन्हें लगता है कि वे बेहतर हो रहे हैं, लक्षण वापस आ जाते हैं।
निश्चित रूप से उनके, उनके परिवारों और समाज के लिए इसके महत्वपूर्ण आर्थिक परिणाम हैं।