रांची: रांची प्रेस क्लब में रविवार को एक चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा का विषय था पुलिसिंग की बदलती चुनौतियां और पीपुल फ्रेंडली पुलिसिंग।
इसमें बतौर मुख्य अतिथि सीआईडी एडीजी प्रशांत सिंह मौजूद हुए। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य में सीमित संसाधनों के बेहतर मैनेजमेंट से बेहतर पुलिसिंग हो सकती है।
एडीजी सीआईडी ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में अपराध की शैली बदली है। साइबर अपराध से होनेवाला पूंजी का नुकसान अन्य आर्थिक अपराधों की तुलना में कहीं अधिक है। पुलिसिंग में समय के साथ बदलाव हो रहा है।
संसाधन भी थानों को मिल रहे हैं। इन संसाधनों के बेहतर मैनेजमेंट से पुलिसिंग को बेहतर किया जा सकता है। एडीजी सीआईडी ने इंग्लैंड और अमेरिकी शहरों में पुलिसिंग पर चर्चा करते हुए कहा कि बाहर के देशों में पुलिस की छवि एंटी ब्लैक की रही है, लेकिन हमारे यहां पुलिस की ऐसी छवि नहीं है।
परिचर्चा के बाद बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह की किताब जिंदगी के 78 कोहिनूर का विमोचन भी हुआ।
कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र, संजय मिश्र, झारखंड पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेंद्र सिंह, द रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह आदि उपस्थित थे। मंच का संचालन क्लब के महासचिव अखिलेश सिंह ने किया।
राजनीतिक एजेंडे में शामिल न हो पुलिस
कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र ने कहा कि पुलिस को राजनीतिक एजेंडे पर या राजनीतिक एजेंट की तरह काम नहीं करना चाहिए। राजनीतिक वजहों के कारण पुलिस की छवि खराब हुई है।
पुलिस में सुधार के लिए प्रकाश सिंह के सुधारों की चर्चा होती है, लेकिन झारखंड में ही उन सुधारों का पालन नहीं हुआ। वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र ने कहा कि पुलिस व्यवसथा में 75 सालों में कोई खास सुधार नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि पुलिस के जवान आज भी उन्हीं हालात में बैरकों में रहते हैं, जैसे आजादी के पहले रहते थे। पुलिसिंग का कॉरपोरेटाइजेशन हुआ है, लेकिन यह सही नहीं लगता।
हायर एजुकेशन के बाद लोग इस पेशे में आ रहे हैं, लेकिन पुलिस को संवेदनशील होने की जरूरत है। पुलिसिंग में नीचे के स्तर पर व्यवसथा सुधरनी चाहिए।
500 लोगों के बीच घिरे रहने से नहीं सुधरेगी पुलिसिंग
कार्यक्रम के दौरान बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि थानों के स्तर पर पुलिस में बदलाव जरूरी है। राज्यों में पुलिस अफसरों को दो साल का कार्यकाल नहीं दिया जाता। थानेदारों को बिना वजह हटा दिया जाता है।
अमूमन थानेदार अपने इलाके के 400 से 500 लोगों तक ही पहुंच रखते हैं। थाना क्षेत्र के गांव में भी वे वहीं जाते हैं, जहां सुविधाएं मिलती हैं, एक ही तरह के लोगों से थाने के लोग घिरे रहते हैं।
मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने अपनी किताब जिंदगी के 78 कोहिनूर अपने अनुभवों के आधार पर लिखी है। आगे भी वह दो पुस्तकों पर काम कर रहे हैं।
जल्द ही उनकी दो अन्य किताबें भी उपलब्ध होंगी। कार्यक्रम के दौरान झारखंड पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि आमलोगों की उम्मीदें पुलिस से काफी अधिक होती हैं, बदलते माहौल में पुलिस का पब्लिक फ्रेंडली होना अनिवार्य है।