नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को लखनऊ में दर्ज एफआईआर के संबंध में जारी गैर जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) से संबंधित मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत नहीं मिली।
यह मामला पिछले साल 12 अगस्त को उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद दर्ज किया गया था, जहां उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार समाज के एक निश्चित वर्ग का पक्ष ले रही है।
सिंह ने शीर्ष अदालत में प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में उनके खिलाफ कई एफआईआर को रद्द करने की मांग की और दावा किया कि ये मामले राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम है।
सिंह ने एक अलग याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 21 जनवरी के फैसले को भी चुनौती दी है, जिसमें लखनऊ में प्राथमिकी को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में हाईकोर्ट के आदेश की जांच किए बिना मामले में कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा और अधिवक्ता सुमेर सोढ़ी को मामले में रिकॉर्ड हाईकोर्ट के आदेश की प्रति लाने को कहा।
सिंह के वकील ने पीठ से अनुरोध किया कि उन्हें एनबीडब्ल्यू की पृष्ठभूमि में राहत दी जानी चाहिए, जो उनके खिलाफ जारी किया गया है।
पीठ ने जवाब दिया कि सिंह इसके लिए ट्रायल कोर्ट से छूट की मांग कर सकते हैं।
पीठ ने इस स्तर पर मामले में कोई नोटिस जारी करने से भी इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
सिंह ने शीर्ष अदालत में दायर अपनी दलीलों में से एक में कहा कि उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में केवल कुछ सामाजिक मुद्दों और समाज में कुछ वर्ग के खिलाफ सरकार की उदासीनता पर प्रकाश डाला था।
सिंह ने आरोप लगाया है कि भाजपा सदस्यों के कहने पर उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई।
सिंह ने कहा कि एफआईआर राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा है और उन्हें डराने का भी इरादा है।
उन्होंने लखनऊ, संत कबीर नगर, खीरी, बागपत, मुजफ्फरनगर, बस्ती और अलीगढ़ सहित आठ जिलों में दर्ज आठ एफआईआर का हवाला दिया।