नई दिल्ली: Supreme Court ने मंगलवार को कहा कि रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) परियोजना के Delhi-Alwar और Delhi-Panipat Corridor के निर्माण के लिए दिल्ली सरकार (Delhi Government) के विज्ञापन फंड (Advertising Fund) को उसके हिस्से की पूर्ति के लिए संलग्न किया जाए।
न्यायमूर्ति S.K.कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यदि दिल्ली सरकार एक सप्ताह की अवधि के भीतर वित्तीय व्यवस्था करने में विफल रहती है तो उपरोक्त आदेश लागू हो जाएगा।
“प्रदूषण कम करने की प्रक्रिया का हिस्सा”
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, “हम विज्ञापन बजट पर रोक लगाएंगे, इसे संलग्न करेंगे और इसे (RRTS Project के लिए) यहां ले जाएंगे।”
अपने आवेदन में RRTS परियोजना को कार्यान्वित कर रहे निगम ने कहा कि दिल्ली सरकार ने धन उपलब्ध न कराकर Supreme Court को पहले दिए गए अपने वचन का उल्लंघन किया है।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रैपिड रेल परियोजना (Rapid Rail Project) “प्रदूषण कम करने की प्रक्रिया का हिस्सा” है और इसका लोगों पर “व्यापक प्रभाव” पड़ता है। इसमें कहा गया कि विज्ञापन के लिए दिल्ली सरकार के बजटीय आवंटन को रैपिड रेल परियोजना में लगाना चाहिए।
Supreme Court ने कहा…
Supreme Court ने कहा, “आपने अपने वादे का उल्लंघन किया है, आप विस्तार मांगने भी नहीं आए।” कोर्ट ने अगली सुनवाई 28 नवंबर को सूचीबद्ध किया है।
इस साल जुलाई में, दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिघवी ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि 415 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान दो महीने के भीतर किया जाएगा।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने RRTS Project के निर्माण के लिए धन देने में असमर्थता व्यक्त करने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नेतृत्व वाली आप सरकार से पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों के लिए खर्च किए गए धन का विवरण देने के लिए हलफनामा मांगा था।
शीर्ष अदालत ने सवाल किया था,”यदि आपके पास विज्ञापनों के लिए पैसा है, तो आपके पास उस परियोजना के लिए पैसा क्यों नहीं है, जो सुचारू परिवहन सुनिश्चित करेगी?”
दिल्ली सरकार के चालू वित्तीय वर्ष में विज्ञापन बजट (Advertising Budget) 550 करोड़ रुपये है और पिछले तीन वित्तीय वर्षों मे उसने विज्ञापनों पर 1,100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं।