रांची: सुदेश कुमार महतो (Sudesh Kumar Mahto) के नेतृत्व में गुरुवार को AJSU (आजसू) के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन (Rajbhawan) में राज्यपाल रमेश बैस (Governor Ramesh Bais) से मुलाकात की।
पार्टी की ओर से नगर निकाय चुनाव (Municipal Elections) में OBC आरक्षण को लेकर बात रखी और इससे संबंधित एक ज्ञापन सौंपा।
राज्य सरकार निकाय चुनाव कराने की तैयारी में जुटी है
राज्यपाल को सौंपे गये ज्ञापन (Memorandum) में कहा गया है कि राज्य सरकार निकाय चुनाव कराने की तैयारी में जुटी है।
इसके तहत OBC के लिए आरक्षित विभिन्न स्तर के पदों को समाप्त किए जा रहे हैं।
निकाय चुनाव में ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण से वंचित किया जा रहा है।
इसी वर्ष मई में बिना ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के झारखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (Three Tier Panchayat Elections) संपन्न हुआ।
ऐसा झारखंड (Jharkhand) के इतिहास में पहली बार हुआ।
यह स्थिति पैदा करने के लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार जिम्मेदार है। इन चुनावों में ओबीसी को उनका हक और अधिकार मिले, इसके लिए सरकार कभी गंभीर और संवेदनशील नहीं रही।
सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के लिए कोई कदम नहीं उठाया है
आजसू पार्टी (AJSU Party) का मानना है कि यह राज्य की बड़ी आबादी की अनदेखी भी है।
सरकार ने ट्रिपल टेस्ट (Triple Test) कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। इसके अलावा राज्य में जातीय जनगणना कराने की निहायत जरूरत को भी सरकार ने नजर अंदाज कर दिया।
राज्य सरकार अपने स्तर से जातीय जनगणना कराने की सीधी पहल करे, इस बाबत आजसू ने मुख्यमंत्री (Chief Minister) को पत्र लिखकर सकारात्मक कदम उठाने का आग्रह किया था, लेकिन अब तक सरकार के स्तर पर कोई संतोषजनक पहल होती नहीं दिख रही।
आरक्षण की सीमाएं तय करने में जातीय आंकड़ो की अहम् भूमिका
ज्ञापन में कहा गया कि जातीय जनगणना से हर आदमी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का सही आंकलन संभव है।
जातीय आंकड़े आरक्षण की सीमाएं तय करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
झारखंड में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने की बहुप्रतीक्षित मांग जातीय आबादी के दावे के साथ सालों से उठती रही है।
दरअसल, इस राज्य के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जातियों की बहुलता है।
झारखंड में वैसे भी OBC को महज 14 फीसदी आरक्षण हासिल है जबकि इस वर्ग की आबादी लगभग 51 फीसदी है। अब अलग-अलग कारणों से ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को भी अनारक्षित किया जा रहा है।
पंचायत और नगर निकाय में पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व करने का जो भी मौका था, उसे छीना जा रहा है।