नई दिल्ली: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं (Divorced Muslim Women) के गुजारे भत्ते को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बेहद अहम फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट (High Court) ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी साढ़े तीन महीने ही नहीं बल्कि जीवन भर गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।
फैसले (Verdict) के मुताबिक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से सिर्फ जीवन भर गुजारा भत्ता (Alimony) पाने की ही हकदार नहीं है बल्कि गुजारा भत्ते की रकम इतनी होनी चाहिए जिसमें वह पहले जैसी सम्मानजनक जिंदगी (Dignified Life) जी सके।
अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा…
अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस सिर्फ लिंग या धर्म के आधार पर मुस्लिम महिलाओं (Muslim Women) के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक से गुजारा भत्ते के साथ ही तलाकशुदा (Divorced) मुस्लिम महिला मेहर की रकम और शादी में मिले सभी उपहार को भी पाने की हकदार रहेगी।
अदालत ने कहा है कि गुजारा भत्ता इतना पर्याप्त होना चाहिए कि तलाकशुदा महिला के रहने – खाने -कपड़ों व अन्य जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सके।
तलाकशुदा मुस्लिम महिला जीवन भर गुजारा भत्ते पाने की हकदार: अदालत
अदालत (Court) ने अपने फैसले में यह साफ किया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला जीवन भर गुजारा भत्ते को पाने की हकदार तभी होगी जब उसने दूसरी शादी (Marriage) ना की हो।
दूसरी शादी करने की सूरत में वह पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं रह पाएगी। हाईकोर्ट ने गाजीपुर फैमिली कोर्ट (Ghazipur Family Court) के के सिर्फ इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता दिलाने के आदेश को अवैध करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice) ने वैधानिक उप उपबंधों व साक्ष्यों का सही परिशीलन किए बगैर ही आदेश जारी किया था।
यह आदेश जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी (Surya Prakash Kesarwani) और जस्टिस अजहर हुसैन इदरीसी की डिवीजन बेंच ने गाजीपुर की तलाकशुदा मुस्लिम महिला जाहिद खातून की अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया है।
मामले के मुताबिक गाजीपुर की रहने वाली जाहिद खातून (Zahid Khatoon) की शादी 1989 में नूरुल हक खान के साथ हुई थी। नूरुल हक डाक विभाग (Postal Department) में कर्मचारी है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत को तीन महीने की मोहलत
तकरीबन 11 साल तक साथ रहने के बाद पति नूरुल हक ने याचिकाकर्ता पत्नी जाहिद खातून को ट्रिपल तलाक दे दिया। इसके बाद जाहिद खातून ने गुजारा भत्ता दिए जाने की मांग को लेकर गाजीपुर (Ghazipur) में मजिस्ट्रेट की कोर्ट में अर्जी दाखिल की।
साल 2014 में यह मुकदमा गाजीपुर की ही फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर हो गया।
गाजीपुर की फैमिली कोर्ट ने पिछले साल 15 सितंबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिला विवाह विच्छेदन पर अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत याचिकाकर्ता (Petitioner) जाहिद खातून को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी 3 महीने और 13 दिन तक पन्द्रह सौ रुपए प्रति महीने की दर से गुजारा भत्ते का भुगतान करने का आदेश जारी किया।
पत्नी ज़ाहिदा खातून ने गाजीपुर फैमिली कोर्ट के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना जजमेंट (Judgement) रिजर्व कर लिया था।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (Division Bench) ने गाजीपुर की फैमिली कोर्ट को अपने आदेश के तहत अब नये सिरे से गुजारा भत्ता तय किए जाने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत को इसके लिए तीन महीने की मोहलत दी है।
अदालत (Court) के फैसले के मुताबिक निचली अदालत से गुजारा भत्ते की रकम तय किए जाने तक पूर्व पति नूरुल हक खान को याचिकाकर्ता जाहिद खातून को हर महीने 5000 रूपये का गुजारा भत्ता देना होगा।