हैदराबाद: खाली खजाना और कर्ज का भारी बोझ आंध्र प्रदेश की बदहाली की कहानी कह रहे हैं। बता रहे हैं कि किस तरह यह राज्य वेतन और पेंशन का भुगतान करने में भी मुश्किलों का सामना कर रहा है।
इस वित्तीय संकट का बीज राज्य के विभाजन के समय ही बो दिया गया था। इसके बाद केंद्र द्वारा प्रतिबद्धताओं का सम्मान नहीं करने और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) सरकार द्वारा केंद्र की भाजपानीत सरकार पर दबाव बनाने में विफल रहने से समस्याएं और भी बढ़ गईं।
विश्लेषकों का कहना है कि कोविड-19 महामारी ने इस वित्तीय संकट को और भी गहरा कर दिया है।
राज्य न केवल वेतन और पेंशन का भुगतान करने में संघर्ष कर रहा है, बल्कि खाली खजाने ने कुछ योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी प्रभावित किया है।
आंध्र प्रदेश देश के सबसे अधिक कर्ज में डूबे राज्यों में से एक है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, राज्य का बकाया कर्ज 3.98 लाख करोड़ रुपये है। इसका ऋण-जीएसडीपी अनुपात 37.6 प्रतिशत है। इस मामले में यह देश के सभी राज्यों में चौथे स्थान पर है।
पिछले साल नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश पर 3.37 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था।
आंकड़ों से यह भी पता चला है कि 2020-21 के दौरान, राज्य ने मुख्य रूप से वेतन, पेंशन और मुफ्त सुविधाओं के भुगतान के लिए प्रति माह औसतन 9,226 करोड़ रुपये उधार लिए। ऋण लेने की यही प्रवृत्ति 2021-22 के दौरान भी जारी रही।
वर्ष 2014 में विभाजन के समय आंध्र प्रदेश पर 97,000 करोड़ रुपये का ऋण बोझ था। मार्च 2019 तक यानी पांच साल में यह बढ़कर करीब 2.59 लाख करोड़ रुपये हो गया।
मई 2019 में सत्ता में आई वाईएसआरसीपी सरकार ने बैंकों और अन्य स्रोतों से 1.40 लाख करोड़ रुपये और उधार लिए।
अब स्थिति ऐसी हो गई है कि यह आशंका जताई जा रही है कि राज्य को ऋण चुकाने के लिए भी ऋण जुटाने की जरूरत पड़ सकती है।
आंध्र सरकार ने 2021-22 के लिए 50,525 करोड़ रुपये के ऋण का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन राज्य ने इस अवधि में लक्ष्य से अधिक ऋण लिया। राज्य सरकार ने 2021-22 के बजट में ऋण भुगतान के लिए 23,205 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था।
सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी और मुख्य विपक्षी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) वित्तीय संकट को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के खेल में लगी हुई है।
वाईएसआरसीपी का कहना है कि राज्य की खराब वित्तीय स्थिति उसे तेदेपा से विरासत में मिली है और तेदेपा का आरोप है कि जगन मोहन रेड्डी सरकार वित्तीय अनियमितताओं, बजट उल्लंघन और राजकोषीय अनुशासनहीनता में लिप्त है।
तेदेपा ने मांग की है कि राज्य सरकार राज्य के राजस्व और व्यय की निगरानी के लिए विशेषज्ञों के साथ एक वित्तीय परिषद का गठन करे।
तेदेपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री यनामला रामकृष्णुडु ने बताया कि वित्तीय विशेषज्ञ एन.के. सिंह ने, जो राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की समीक्षा समिति में थे, राज्यों के बीच वित्तीय अनुशासन लाने के लिए राजकोषीय परिषद के गठन की सिफारिश की थी।
यह राजकोषीय परिषद बजट मैनुअल के कार्यान्वयन की जांच करेगी और नियमित आधार पर सार्वजनिक व्यय को नियंत्रित करेगी।
रामकृष्णुडु का तर्क है कि यदि वित्तीय परिषद का गठन किया जाता है, तो जगन मोहन रेड्डी सरकार एफआरबीएम मानदंडों का उल्लंघन करके बड़े पैमाने पर ऋण नहीं ले पाएगी।
राज्य के वित्तमंत्री बुगन्ना राजेंद्रनाथ वित्तीय परिषद के गठन की मांग को यह कहते हुए खारिज करते हैं कि केंद्र सरकार ने खुद संसद में स्पष्ट किया है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग और सांख्यिकीय संस्थान के रहते वित्तीय परिषद की कोई जरूरत नहीं है।
सरकार का दावा है कि आर्थिक तंगी और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव के बावजूद राज्य अच्छा प्रदर्शन कर रहा था।
इसने बताया कि 2020-21 के दौरान जीएसडीपी ने 1.58 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जो पिछले वर्ष की राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद की नकारात्मक 3.80 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय भी 2020-21 में बढ़कर 1.70 लाख रुपये प्रतिवर्ष हो गई, जो 2019-20 में 1.68 लाख रुपये थी।
राज्य ने वर्ष 2021-22 के लिए 2.29 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक बजट पेश किया। अनुमानित राजस्व घाटा 5,000 करोड़ रुपये था, जबकि वित्तीय घाटा 37,029 करोड़ रुपये का था, जो देश में सबसे अधिक है।
सरकार ने 22 ऐसी योजनाओं के लिए, जिनके तहत निशुल्क सुविधाएं दी जाती हैं, 48,083 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की।
तेदेपा का आरोप है कि पिछले तीन साल में राजस्व घाटा और कर्ज कई गुना बढ़ा है। रामकृष्णुडु ने कहा, तेदेपा के शासनकाल में 10.22 प्रतिशत की दहाई अंकों की रही विकास दर अब नकारात्मक 2.58 प्रतिशत पर आ गई। यह आंकड़ा वित्तीय संकट की वास्तविक स्थिति बताने के लिए पर्याप्त है।
हालांकि, मौजूदा वित्तमंत्री राजेंद्रनाथ का कहना है किविपक्ष कोविड महामारी से प्रभावित वित्तीय स्थिति की तुलना सामान्य स्थिति से कैसे कर सकता है।
उन्होंने बताया कि कोविड महामारी के कारण, राज्य को वित्तवर्ष 2020-21 में 8,000 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई है। वित्तमंत्री ने कहा कि ऐसी हालत में भी राज्य ने उसी समय कोविड नियंत्रण के लिए 7,120 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए हैं।
कठिनाइयों के बावजूद राज्य सरकार बजट प्रावधानों को एफआरबीएम के नियमों के अनुसार लागू कर रही है।
राज्य के मौजूदा आर्थिक संकट के लिए पिछली तेदेपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि तेदेपा के पास वाईएसआरसीपी सरकार पर उंगली उठाने का कोई नैतिक आधार नहीं है।
उन्होंने कहा, अगर बकाया बिलों, अतिरिक्त ऋणों और निविदा प्रक्रियाओं में बेईमानी नहीं होती तो आज स्थिति कुछ अलग होती।
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और भाजपा नेता आईवाईआर कृष्ण राव ने वाईएसआरसीपी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को खराब वित्तीय स्थिति का एक कारक बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपना सारा राजस्व इन योजनाओं पर खर्च कर रही है।
वाईएसआरसीपी की लोकलुभावन योजनाओं को अव्यावहारिक बताते हुए, कृष्णा राव ने कहा कि चुनाव आयोग को एक नियम बनाना चाहिये जिसमें एक पार्टी को अपने राज्य की आय दिखानी चाहिए, ताकि यह साबित हो सके कि वह सत्ता में आने पर अपने चुनावी वादों को पूरा कर पाएगी।
अर्थशास्त्री पापा राव ने बताया कि राज्य की वित्तीय समस्याएं विभाजन से उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने कहा कि विभाजन के बाद, राज्य को वित्तीय अन्याय का सामना करना पड़ा।
यह राजस्व घाटे वाला राज्य था, इसलिए केंद्र सरकार ने घाटे को पाटने के लिए आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 में कई वादे किए लेकिन उनमें से एक भी प्रतिबद्धता पूरी नहीं की गई।
उनके अनुसार, जगन मोहन रेड्डी सरकार 2019 में भारी जनादेश के बावजूद अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने में विफल रही।