नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दे दी है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने अर्नब को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि बांबे हाई कोर्ट को मामले में आरोपी को अंतरिम जमानत दे देनी चाहिए थी।
कोर्ट ने कहा कि अगर संवैधानिक कोर्ट किसी की स्वतंत्रता का ध्यान नहीं देगी तो फिर कौन करेगा।
सुनवाई के दौरान अर्नब के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अन्वय नाइक की कंपनी 7 साल से आर्थिक दिक्कत में थी । आशंका है कि उन्होंने अपनी माँ की हत्या की और उसके बाद आत्महत्या की।
अर्नब ने सभी वेंडर को नियमित भुगतान किया है। केस को दोबारा खोलने के लिए नियमों का पालन नहीं किया गया है। साल्वे ने अर्नब और रिपब्लिक के खिलाफ हाल में दर्ज हुए सभी मामलों का हवाला देते हुए कहा कि एक के बाद एक मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
इस मामले में केस को गृह मंत्री के कहने पर दोबारा खोला गया। ट्रायल कोर्ट के मजिस्ट्रेट को अर्नब को निजी बांड पर रिहा कर देना चाहिए था। साल्वे ने इस केस को सीबीआई के हवाले करने की मांग की। साल्वे ने कहा कि अगर अर्नब को रिहा किया गया तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले पर निचली अदालत में सुनवाई चल रही है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या यह केस वाकई ऐसा है, जिसमें हिरासत में लेकर पूछताछ ज़रूरी है। क्या साल्वे के मुवक्किल पर सीधा कोई केस बन रहा है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सिब्बल से पूछा कि क्या यह वाकई भारतीय दंड संहिता की धार 306 का केस है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता ज़रूरी अधिकार है। भूल जाइए कि वह व्यक्ति कौन है। आपको उसके विचार पसंद हैं या नहीं। मैं खुद उनका चैनल नहीं देखना चाहता, लेकिन हमारे पास एक नागरिक आया है।
हमें हर नागरिक के अधिकार की रक्षा करनी है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोई चैनल पसंद नहीं है तो मत देखिए। अगर कोई फैसला देने के बाद मैं ट्विटर पर देखूं कि लोग क्या कह रहे हैं तो परेशान हो जाऊंगा। सरकार को कुछ बातों की उपेक्षा कर देनी चाहिए। इन बातों का चुनाव पर शायद ही कोई असर पड़ता है।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वकील अमित देसाई ने कहा कि निचली अदालत में मामला लंबित है। कल आदेश आ सकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी को रिहा न करने के लिए हमारे पास कई तकनीकी कारण हो सकते हैं। लेकिन निजी स्वतंत्रता के अधिकार की अपनी अहमियत है।
अगर यह आतंकवाद या कोई और अति गंभीर मामला होता तो बात अलग होती। अमित देसाई ने कहा कि अगर कानून में कोई विकल्प उपलब्ध न हो तो हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट विशेष आदेश दे सकते हैं। यहां विकल्प है। इन्होंने उसका इस्तेमाल किया है। सेशंस जज को फैसला लेने दीजिए। पुलिस ने भी जांच में कुछ तथ्य जुटाए हैं। हमें उन्हें निचली अदालत में रखने दिया जाए।
देसाई ने कहा कि यह दलील कि राज्य को हर केस में नया तथ्य मिलने पर आगे जांच की बजाय पहले कोर्ट में जाना चाहिए, सही नहीं है। किसी की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा रही है। इनके पास अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत निचली कोर्ट जाने का अधिकार था। इन्होंने हाई कोर्ट का रास्ता चुना है। अब निचली अदालत गए हैं। वहां फैसला होने दीजिए।
सुनवाई के दौरान अन्वय नाइक के परिवार के वकील चंद्र उदय सिंह ने कहा कि जांच अधिकारी ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इस बात की जानकारी हमें नहीं दी गई। बाद में पता चलने पर हमने इसकी कॉपी मांगी। वह भी हमें नहीं दी गई।
उल्लेखनीय है कि अर्नब गोस्वामी को पिछले 4 नवम्बर को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें अलीबाग के ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। इसके बाद अर्नब ने बांबे हाई कोर्ट का रुख किया।
बांबे हाई कोर्ट ने पिछली 9 नवम्बर को अंतरिम जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें ट्रायल कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया था कि वे अर्नब की याचिका का निपटारा चार दिनों के अंदर करें।
अर्नब को इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां की 2018 में खुदकुशी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। अन्वय ने सुसाइट नोट में आरोप लगाया था कि अर्णब और दूसरे आरोपितों ने उनका बकाया नहीं दिया, जिसकी वजह से उन्हें खुदकुशी के लिए मजबूर होना पड़ा। अर्नब के अलावा दो अन्य आरोपितों फिरोज शेख और नीतेश सारदा को भी गिरफ्तार किया गया था।