नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 70 दिनों से जारी है। 26 जनवरी को किसानों द्वारा ट्रैक्टर परेड निकाली गई थी, परेड के दौरान जमाकर हिंसा भी हुई थी।
हिंसा के बाद किसानों की खूब किरकिरी हुई।
हालांकि अब भी किसान अपनी मांग पर अड़े रहकर आंदोलनरत हैं। परेड के दौरान जो हिंसा हुई उसकी जिम्मेदारी अब तक किसानों ने नहीं ली है।
लेकिन इस बीच एक बड़ी खबर सामने आई है।
दरअसल, प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ने कई आधिकारिक बयान जारी अपने तमाम संगठनों से किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा था।
संगठन ने मोदी सरकार द्वारा लाए कृषि कानूनों को ब्रिटिश काल के रॉलेक्ट एक्ट की तरह बताया है। सीपीआई माओवादी ने अपने फ्रंटल संगठनों को किसानों की लड़ाई में साथ देने का निर्देश दिया था।
बता दें कि किसान आंदोलन में घुसपैठ की आशंका लगातार जाहिर की जा रही थी। माववादियों के समर्थन के बाद इसकी पुष्टि भी हो गई है।
तीन अलग-अलग माओवादी संगठनों ने किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाकर इसके लिए संयुक्त बयान भी जारी किया है।
प्रतिबंधित सीपीआई माओवादी के प्रवक्ता अभय ने वर्तमान के दिनों को ब्रिटिश काल से तुलना करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है।
ट्रैक्टर परेड के दौरान कानून व्यवस्था बिगड़ने के लिए माओवादियों ने पुलिस को जिम्मेदार बताया है। संगठन ने दीप सिद्धू और लक्खा जैसे लोगों को भाजपा का एजेंट करार दिया है।
केंद्रीय प्रवक्ता ने जारी बयान में इस बात का भी जिक्र किया था कि किस तरीके से केंद्र सरकार कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन पर देर करने की रणनीति पर काम कर रही है।
माववादियों की तरफ से कहा गया है कि सरकार किसान संगठनों में फूट डालने की कोशिश कर रही है।
महिला विंग से जुड़ी है रनिता हिमाछी ने भी एक वक्तव्य जारी कर किसानों के समर्थन में आने की बात कही है। फिलहाल इन चिट्ठियों की पुष्टि की जा रही है।