कोलकाता: Calcutta High Court की एक खंडपीठ ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि पश्चिम बंगाल सरकार (Government of West Bengal) को सरकारी विश्वविद्यालयों (Government Universities) में कुलपतियों (VC) की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति का अधिकार नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा पहले से नियुक्त या पुनर्नियुक्त कुलपतियों की बर्खास्तगी का भी आदेश दिया।
पिछले साल भी एक जनहित याचिका दायर की थी
पिछले साल दिसंबर में राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने कलकत्ता विश्वविद्यालय (Calcutta University), जादवपुर विश्वविद्यालय और प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय सहित 24 राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के बारे में आपत्ति जताई थी।
पिछले साल भी एक व्यक्ति अनुपम बेरा ने इस मामले में मुख्य न्यायाधीश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति भारद्वाज की खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की थी।
इसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार ने 24 राज्य विश्वविद्यालयों (State Universities) के कुलपतियों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन किए बिना नियुक्तियां या पुनर्नियुक्तियां दी हैं।
पूरी बहस VC की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी के गठन पर
पूरी बहस VC की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी के गठन पर थी। UGC के मानदंडों के अनुसार, खोज समिति का गठन एक UGC प्रतिनिधि, एक संबंधित राज्य विश्वविद्यालय से और एक राज्यपाल द्वारा नामित किया जाना है।
सर्च कमेटी के गठन की यह प्रथा 2014 तक पश्चिम बंगाल में भी अपनाई गई थी, जब राज्य के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, जो करोड़ों रुपये के शिक्षकों की भर्ती में कथित संलिप्तता के कारण वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं, ने नियमों में संशोधन किया।
सर्च कमेटी (Search Committee) का गठन, इसके तहत UGC प्रतिनिधि को राज्य सरकार के प्रतिनिधि द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुसार शिक्षा समवर्ती सूची में होने के कारण UGC प्रतिनिधि के बिना खोज समितियों द्वारा नियुक्त कुलपतियों को कई अदालतों में चुनौती दी गई थी, यदि इस विषय पर कोई राज्य अधिनियम उसी मामले में किसी केंद्रीय अधिनियम के खिलाफ जाता है, तो बाद वाला मान्य होगा।