Aditya-L1 Mission Launch : इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन यानी भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (ISRO) ने मून मिशन के बाद शनिवार यानी 2 सितंबर को अपने निर्धारित समय के अनुसार अपना पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1 लॉन्च कर एक और नया इतिहास स्पेस साइंस में रच दिया है। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से आदित्य एल1 को लॉन्च कर दिया गया है
यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने की मदद
मिशन के पेलोड्स को भारत के कई संस्थानों ने मिलकर तैयार किए हैं। आदित्य एल-1 को डीप स्पेस में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (EAS) भी ग्राउंड सपोर्ट देगा। दरअसल गहरे अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान की सिग्नल काफी कमजोर हो जाती है।
इसके लिए कई एजेंसियों की मदद लेनी होती है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने इससे पहले चंद्रयान-3 मिशन के दौरान भी इसरो को ग्राउंड सपोर्ट दिया था।
कक्षा निर्धारण सॉफ्टवेयर में भी मदद
EAS के मुताबिक एजेंसी आदित्य-एल1 को सपोर्ट करेगी। ईएसए आदित्य एल-1 को 35 मीटर डीप स्पेस एंटिना से ग्राउंड सपोर्ट देगा जो यूरोप की कई जगहों पर स्थित है। इसके अलावा ‘कक्षा निर्धारण’ सॉफ़्टवेयर में भी यूरोपियन स्पेस एजेंसी की मदद ली जाएगी।
आदित्य-एल1 की ग्राउंड सपोर्ट में यूरोपियन स्पेस एजेंसी सबसे प्रमुख एजेंसी है। ईएएए ने कहा कि वे इस मिशन की लॉचिंग से लेकर मिशन के एल-1 प्वाइंट पर पहुंचने तक सपोर्ट देंगे।
साथ ही अगले दो साल तक वे आदित्य एल 1 को कमांड भेजने में भी मदद करेंगे।
इस वजह से मदद की पड़ी जरूरत
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार, जब भी कोई अंतरिक्ष यान डीप स्पेस में सफर करता है, उसका सिग्नल कमजोर हो जाता है।
ऐसे में कई दूसरी स्पेस एजेंसी की ताकतवर एंटिनाओं की मदद से अंतरिक्ष यान से संपर्क साधा जाता है।
धरती की भौगोलिक स्थिति भी सिग्नल रिसीव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे कई अंतरिक्ष यान से भेजे गए सिग्नल किसी दूसरे देश की सीमा में बेहतर तरीके से काम करते हैं। इसलिए भी विदेशी एजेंसियों की सहायता लेनी पड़ती है।