नई दिल्ली: पिछले कुछ वर्षों में एक के बाद एक चुनावी शिकस्त से उबरने की कोशिश में लगी कांग्रेस को इस बार चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में हुए इन चुनावों में, खासकर असम और केरल में, बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी।
लेकिन जो नतीजे आ रहे हैं उससे पार्टी की दिक्कतें कम होने के बजाय बढ़ने के आसार बन रहे हैं।
असम, केरल और पुडुचेरी में चुनावी हार और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सफाया होना न सिर्फ पार्टी, बल्कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी झटका है।
उनके शुभचिंतक मान रहे थे कि केरल और असम में पार्टी यदि सरकार बनाने में सफल रही तो राहुल गांधी के फिर से अध्यक्ष पद संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा।
संभावित परिणामों को ध्यान में रख अब कांग्रेस नेतृत्व को एक बार फिर असंतुष्ट खेमे की ओर से सवाल पूछे जाने की आशंका सता रही है।
राहुल गांधी के लिए ये नतीजे इस मायने में बड़ा झटका हैं क्योंकि उन्होंने केरल में पूरी ताकत झोंक दी थी।
वह कई गुटों में बंटी नजर आ रही राज्य इकाई को एक छतरी के नीचे लाने में संभवत: विफल रहे जिसकी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी।
लोकसभा चुनाव में केरल से कांग्रेस अधिकतम सीटें जीती थीं और खुद राहुल गांधी भी प्रदेश से वायनाड लोकसभा सीट से निर्वाचित हैं। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अगुवाई में एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) केरल में शानदार जीत हासिल कर हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परिपाटी को तोड़ता नजर आ रहा है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के विजेता बनने के बाद आने वाले दिनों में विपक्ष की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की दावेदारी में कई नाम जुड़ जाएंगे, हालांकि कांग्रेस का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का वह एकमात्र विकल्प है।
चुनाव बाद अब कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ सकती है। जनवरी, 2021 में कांग्रेस कार्य समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि इस साल जून में किसी भी कीमत पर नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा।
इन नतीजों की वजह से गांधी परिवार का नेतृत्व एक बार फिर से पार्टी के असंतुष्ट धड़े के निशाने पर आ जाएगा।
माना जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी वाला ‘जी 23 समूह’ अपना अगला कदम उठाने का इंतजार कर रहा है।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ”इस विषय पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि चुनाव परिणाम हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं, विशेषकर असम और केरल विधानसभा के चुनाव परिणाम हमारे लिए चुनौतीपूर्ण भी हैं और आशा के विपरीत भी।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि अब कांग्रेस को संगठनात्मक और संवाद संबंधी कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी इन दिनों कई आंतरिक मुद्दों का सामना कर रही है।
असम में एआईयूडीएफ (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) और पश्चिम बंगाल में आईएसएफ (इंडियन सेक्युलर फ्रंट) के साथ गठबंधन को लेकर भी सवाल उठे हैं।
कांग्रेस के लिए राहत तमिलनाडु से मिली है जहां उसकी मौजूदगी और द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन ने जीत दर्ज की है।