पटना: राजधानी पटना में क्लीन एयर एक्शन प्लान (स्वच्छ वायु कार्य योजना) को बने दो साल हो चुके हैं, लेकिन अब भी शहर की हवा स्वच्छ और स्वस्थ नहीं हुई है।
सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट ‘एम्बिएंट एयर क्वालिटी असेसमेंट’ के अनुसार बीते सात माह (जनवरी से जुलाई) में शहर में वायु की गुणवत्ता सिर्फ सात दिन ही ‘अच्छी’ श्रेणी में दर्ज की गयी।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) पर आधारित वायु प्रदूषण की हालिया स्थिति को सामने लाना और सरकारी एजेंसियों को ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करना है।
अध्ययन के अनुसार पिछले सात महीने में पटना में हवा की गुणवत्ता कुल दिनों में केवल तीन प्रतिशत दिन ही ‘अच्छी’ रही, जबकि 97 प्रतिशत दिनों में यह सांस लेने के लायक नहीं थी, जिसमें से करीब 66 प्रतिशत दिन ‘मध्यम’ और ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पाए गए और केवल 31 प्रतिशत दिन ‘संतोषजनक’ श्रेणी में देखे गये।
रिपोर्ट के निष्कर्ष इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं कि राज्य में दो महीने कोविड महामारी के कारण लॉकडाउन था, जिसकी वजह से सभी व्यावसायिक एवं औद्योगिक गतिविधियां अस्थायी रूप से बंद थीं।
विश्लेषण के अनुसार बीते सात महीनों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की औसत मासिक सघनता के लिहाज से जनवरी सबसे प्रदूषित महीना रहा और जुलाई सबसे कम प्रदूषित।
जनवरी में पीएम 2.5 की औसत सघनता 130 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर थी, जबकि फरवरी और मार्च में यह क्रमश: 114 और 98 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर पायी गयी।
अप्रैल और मई माह में औसत सघनता क्रमशः 89 और 39 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर आंकी गयी, वहीं जून में यह 33 और जुलाई में यह 25 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर दर्ज की गयी।
शहर में वायु गुणवत्ता को बेहतर करने के समाधानों के बारे में सीड में सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने कहा कि वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बना क्लीन एयर एक्शन प्लान निश्चय ही एक ठोस कदम है।
हालांकि दिशा-निर्देशों के अनुसार अब तक पचास प्रतिशत उपायों को लागू कर दिया जाना चाहिए था।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों में वायु प्रदूषण में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, ऐसे में संबंधित सरकारी विभागों और एजेंसियों की तरफ से दीर्घकालिक समाधान के कई कदम उठाए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत योजना की त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट को सार्वजनिक करना और मॉनिटरिंग कमेटी में सिविल सोसाइटी संगठनों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि के साथ जन-जागरूकता कार्यक्रम को नए सिरे से बढ़ावा देना जरूरी है।
रिपोर्ट में पिछले सात महीनों के पीएम 2.5 की सघनता का तुलनात्मक विश्लेषण पिछले वर्ष 2020 के शुरुआती सात महीने (जनवरी-जुलाई) के साथ भी किया गया, जो बताता है कि पीएम 2.5 इस वर्ष फरवरी में 25 प्रतिशत अधिक, मार्च में 31 प्रतिशच और अप्रैल में 50 प्रतिशत अधिक था।
पिछले वर्ष की तुलना में मई में पीएम 2.5 की औसत मासिक सघनता 15 प्रतिशत, जबकि जून में 27 प्रतिशत और जुलाई में पांच प्रतिशत अधिक देखी गई है।
इसके अलावा उन सभी छह स्थानों पर जहां वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है, उनमें इंदिरा गांधी प्लेनेटोरियम के आसपास सबसे खराब वायु गुणवत्ता देखी गयी और इसके बाद दानापुर और राजवंशी नगर क्षेत्र में कमोबेश यही स्थिति रही।
गुणवत्ता की निगरानी वाले सभी छह जगहों में समनपुरा क्षेत्र को सबसे कम प्रदूषित पाया गया।
उल्लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों का निष्कर्ष है कि पटना में 2016 से वायु प्रदूषण की स्थिति बढ़ती जा रही है और यह गंभीर स्थिति का सूचक है, क्योंकि लोग खराब हवा में सांस लेने को विवश हैं।
मिसाल के तौर पर, 2016 में पीएम 10 की वार्षिक सघनता राष्ट्रीय मानक से कम से कम 3.5 गुना थी, और 2018 में 3.4 गुना और 2019 में 3.9 गुना।
हालांकि 2017 में प्रदूषण का स्तर थोड़ा कम हुआ, लेकिन फिर भी यह राष्ट्रीय मानक से 2.6 गुना अधिक था।
सीड ने अप्रैल 2016 से उत्तर भारत के शहरों के लिए पहला एयर क़्वालिटी बुलेटिन जारी किया था और नवीनतम बुलेटिन इसी श्रृंखला का एक हिस्सा है, ताकि वायु प्रदूषण के समाधान के दृष्टिकोण के अनुरूप सार्वजनिक क्षेत्र में इस पर व्यापक चर्चा हो।