Bihar Caste Survey : गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने बताया कि बिहार में जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा, 19.65 फीसदी अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति वर्ग (Scheduled Tribe Category) के लोगों की आबादी है।
बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 से अधिक बताई गई है। इनमें 81.99 फीसदी हिन्दू, जबकि 17.70 फीसदी मुसलमान हैं।
OBC वर्ग ने की आरक्षण की मांग
जातीय जनगणना (Caste Census) के आंकड़े जारी होते ही बिहार में अब कई स्तरों पर सियासी घमासान मचने के आसार हैं। लोकसभा चुनावों से पहले जारी इन आंकड़ों को लेकर एक तरफ OBC वर्ग, जिसकी कुल आबादी 63 फीसदी से ऊपर है, नए सिरे से आरक्षण की सीमा की मांग कर सकते हैं। वहीं, सियासी दलों में भी घमासान छिड़ सकता है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा…
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने कहा है कि ये रिपोर्ट नीतीश और लालू यादव के लिए स्ट्रोक नहीं बल्कि बैक स्ट्रोक है क्योंकि पिछले 33 सालों से इन्हीं दोनों भाइयों की राज्य में सामाजिक न्याय की सरकार है, बावजूद इसके गरीबों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि नए आंकड़ों से अगड़े या पिछड़े वर्ग और उनके अंदर के गरीबों को कोई फायदा नहीं होने वाला। बहुत होगा तो बिहारी कहावत के अनुसार ‘मूस मोटैहें, लोढ़ा होइहें’ होगा। यानी उनकी गरीबी और बढ़ने वाली है।
नीतीश सर्वाधिक लोकप्रिय नेता
रिपोर्ट जारी होते ही जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ताओं ने इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जीत करार दिया है और कहा है कि वह सच्चे मायने में OBC और दलितों के हितैषी साबित हुए हैं।
JDU के राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह (Karpoori Thakur and VP Singh) के बाद सच्चे मायने में नीतीश कुमार आज पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के लोगों के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे हैं, जिन्होंने कई 100 वर्षों की गुलामी को तोड़ते हुए जातीय जनगणना करवाई। इससे साबित हो गया कि ओबीसी 63 फीसदी हैं।
आगे की मंशा साफ करते हुए त्यागी ने कहा कि कर्पूरी फार्मूले के तहत नीतीश कुमार का फार्मूला अत्यंत पिछड़े वर्ग को भी उनकी संख्या का अनुपात में आरक्षण उपलब्ध कराएगा, जो पिछले 75 वर्षों के दौरान किसी और सरकार ने उपलब्ध नहीं करवाई है।
उन्होंने कहा कि आगामी चुनावों में नीतीश कुमार देशभर में घूमघूमकर जातीय जनगनणा (Caste Census) की वकालत करेंगे और लोगों को समझाएंगे कि शोषितों,वंचितों को उनकी अपनी संख्या जानने का अधिकार है।
नीतीश, एक नायक
जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बिहार की बागडोर संभाली तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के मॉडल को अपनाते हुए महिलाओं को आरक्षण दिया। वह आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा करने की मांग करते रहे हैं।
हालांकि, कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा के आरक्षण प्रावधानों (Reservation Provisions) को अदालतों में इस आधार पर खारिज किया जाता रहा है कि आरक्षण सीमा बढ़ाने का कोई ठोस आधार नहीं है।
अब नीतीश ने उस ठोस आधार का जुगाड़ कर लिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि आगे वह आरक्षण सीमा बढ़ाने का दांव चल सकते हैं।
इस मायने में वह अपने बड़े भाई कहे जाने वाले लालू यादव से आगे निकलते दिख रहे हैं। हालांकि, यह बात स्पष्ट है कि अगड़ों के खिलाफ पिछड़ों में राजनीतिक चेतना जगाने में लालू नीतीश से आगे रहे हैं लेकिन उस सियासी जागरूकता की फसल काटने में नीतीश आगे रहे हैं।
अब जब कई राज्यों में विधान सभा चुनाव (Assembly Elections) हबोने हैं और अगले साल आम चुनाव होने हैं, तब ओबीसी को लेकर जारी सियासत के केंद्र में नीतीश एक नायक के रूप में उभर सकते हैं।
कर्पूरी फार्मूला क्या है
कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) जब जून 1977 दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने 1978 में बिहार में लागू कुल आरक्षण में से 12 प्रतिशत अति पिछड़ों और 8 प्रतिशत पिछड़ों के लिए निर्धारित किया था।
आरक्षण के इस प्रावधान यानी कोटे के अंदर कोटा को कर्पूरी फार्मूला (Camphor Formula) कहा जाता है। उन्होंने तब महिलाओं और सवर्णों को भी तीन फीसदी आरक्षण दिया था।
दूसरी तरफ विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) ने अपनी सरकार को खतरे में डालते हुए 1990 में OBC कैटगरी को आरक्षण देने के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दी थी। इसके बाद उनकी सरकार गिर गई थी।