BJP MP Nishikant Dubey: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के खिलाफ की गई टिप्पणियों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार, 21 अप्रैल 2025 को इस मामले में एक याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की अनुमति मांगी गई थी।
जस्टिस BR गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता को साफ किया कि याचिका दायर करने के लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं है, लेकिन इसके लिए अटॉर्नी जनरल की मंजूरी आवश्यक होगी।
याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने दायर की थी, जो वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं में एक पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी को पत्र लिखकर अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी।
पत्र में कहा गया कि निशिकांत दुबे ने अपने बयानों से सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाई और जनता में न्यायपालिका के प्रति अविश्वास पैदा करने की कोशिश की। तनवीर ने दुबे के बयानों को “गंभीर रूप से अपमानजनक” और “खतरनाक रूप से उकसाने वाला” बताया, जो अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(c)(i) के तहत आपराधिक अवमानना के दायरे में आता है।
इसके अलावा, एक अन्य वकील शी कुमार त्रिपाठी और अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा ने भी अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग की है। मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट और CJI से स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया।
निशिकांत दुबे का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला
निशिकांत दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला बोला था। उन्होंने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।” उन्होंने CJI संजीव खन्ना पर निशाना साधते हुए दावा किया कि “देश में गृह युद्ध के लिए मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं।” दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर “अराजकता फैलाने” और “धार्मिक युद्ध भड़काने” का आरोप लगाया।
ये टिप्पणियां वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के संदर्भ में आईं, जहां कोर्ट ने कानून के कुछ प्रावधानों, जैसे ‘वक्फ बाय यूजर’, पर सवाल उठाए थे। केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई (5 मई 2025) तक इन प्रावधानों को लागू नहीं किया जाएगा।
दुबे ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है, और सुप्रीम कोर्ट का काम कानून की व्याख्या करना है। उन्होंने कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों पर निर्णय के लिए समयसीमा तय करने पर आपत्ति जताई।