पटना: बिहार में नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी का बिहार में ‘सरकारी साथ’करीब 15वर्षों के बाद टूट गया। 2015-17 के बीच करीब डेढ़ साल के समय को छोड़ दें तो बाकी समय दोनों के स्वर-भाव को एक ही देखा गया।
2020 के विधानसभा चुनाव में भी मोदी इस बात पर कायम रहे कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। नीतीश भी उन्हें डिप्टी बनाए रखने पर अड़े रहे, लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के आगे इस बार किसी की नहीं चली।
कहा जा रहा है कि संगठन ने बिहार में पार्टी को नीतीश के ‘यस मैन’ की छवि से बाहर निकालने के लिए यह सब किया।
राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्रा की मानें तो सुशील कुमार मोदी के केंद्र में जाने से बिहार की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भाजपा में व्यक्ति नहीं, संगठन का प्रभाव है।
संगठन में ऐसी चर्चा जोरों पर थी कि सुशील मोदी, नीतीश कुमार के ‘यस मैन’हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उप मुख्यमंत्री रहते सुशील कुमार मोदी, नीतीश से इतने प्रभावित रहे कि भाजपाई मंत्रियों को उभरने और प्रभावी होने का मौका नहीं मिला, इसलिए यह बदलाव किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी इसी तरह की चर्चा है।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा के इस फैसले पर जानकारों का कहना है कि पार्टी के अंदर वर्षों पुरानी कसमसाहट अब कुछ घटेगी।