कोलकाता: पश्चिम बंगाल में 200 सीटें जीतने का टारगेट रखने वाली बीजेपी को विधानसभा चुनाव में अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिल सकी है।
बंगाल चुनाव में राजनीति को करीब से जानने वालों का कहना है कि राज्य में स्थानीय नेतृत्व की कमी और अल्पसंख्यकों के टीएमसी के पक्ष में मतदान करने के चलते ऐसा हुआ है।
विश्लेषकों के मुताबिक राज्य में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी के मुताबिक नहीं रहा है बल्कि मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से टीएमसी के पक्ष में गया है।
पार्टी के कई सीनियर नेताओं का कहना है कि बंगाल में बीजेपी के प्रदर्शन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उनका कहना है कि पार्टी ने 3 सीटों से लेकर 77 तक का सफर तय किया है, जो मायने रखता है। हालांकि पार्टी नेतृत्व को बंगाल में इससे कहीं बड़ी सफलता की उम्मीद थी।
नाम उजागर न करने की शर्त पर पार्टी के एक सीनियर नेता ने इशारों में ही स्थानीय नेतृत्व की कमी का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि अकेले सेंट्रल लीडरशिप की ओर से तैयार किए गए नैरेटिव के आधार पर ही बंगाल में शानदार प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।
इसकी एक अहम वजह यह है कि राज्य में चीफ मिनिस्टर ममता बनर्जी से मुकाबले के लिए कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं था। इससे पहले बंगाल में चुनाव की रणनीति तैयार करने और मजबूती के साथ कैंपेन करने वाले अमित शाह और बीजेपी चीफ जेपी नड्डा ने भी पार्टी का 200 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करना हवाई नहीं है।
बीजेपी नेताओं का कहना था कि राज्य में 2019 के आम चुनाव में 18 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की थी। उस प्रदर्शन के आधार पर ही यह दावा किया गया था। पार्टी के एक और नेता ने कहा, ‘जमीन पर बदलाव की संभावना मौजूद थी।
लेकिन हमने चौथे चरण के चुनाव के बाद यह महसूस किया कि राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत तेज हुआ।
अल्पसंख्यक वोटबैंक आमतौर पर कांग्रेस के साथ जाता रहा है, लेकिन वह टीएमसी के पीछे चला गया।’
बीजेपी नेता ने अपने इस तर्क को मजबूती देते हुए मालदा और मुर्शिदाबाद का उदाहरण भी दिया, जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है।
बीजेपी लीडर ने कहा कि इन इलाकों में 50 फीसदी से ज्यादा की मुस्लिम आबादी है और नतीजों से साफ है कि यह वोटबैंक कांग्रेस की बजाय टीएमसी की तरफ मुड़ गया।
हालांकि बीजेपी ने भी इसकी काट के तौर पर एससी और एसटी की 30 फीसदी आबादी को साथ लाने की कोशिश की थी। माना जा रहा था कि 2019 में बीजेपी की बंपर जीत की वजह भी यही रणनीति थी।
भले ही बीजेपी को इस समाज से समर्थन मिल गया, लेकिन अन्य समुदायों के बीच उस तरह से सपोर्ट नहीं मिल सका।