Bombay high court : बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि जैसे मां बच्चे की देखभाल करने में सक्षम है, फिर चाहे वह बेटा हो या बेटी, वैसे ही पिता भी संतान की परवरिश करने में सक्षम है। इसलिए केवल जेंडर के आधार पर पिता को बेटी की देखभाल के लिए अक्षम (Father Care for Daughter) मानना पूरी तरह से अनुचित है।
कोर्ट ने आगे कहा कि हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि बेटी माता-पिता दोनों का साथ पाने की हकदार है। अभिभावक की सुरक्षा और देखभाल पाना बेटी का बुनियादी मानवाधिकार है।
इससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। इस तरह कोर्ट ने पत्नी को 15 दिन के भीतर बेटी की कस्टडी पिता को सौंपने का निर्देश दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद पत्नी के वकील ने अदालत से अपने फैसले पर 6 सप्ताह के लिए रोक लगाने का आग्रह किया। ताकि वह सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील कर सकें।
ग्रीनकार्ड धारक एक बच्ची के पिता की याचिका पर सुनवाई
इसके मद्देनजर कोर्ट ने चार सप्ताह तक के लिए अपने फैसले पर रोक लगा दी। इस दौरान बेटी की कस्टडी मां के पास रहेगी। कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी बेटी के साथ अमेरिका जाने की इच्छुक हो, तो वह अपने वकील के माध्यम से पति को इसकी जानकारी दे सकती है। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह प्रति माह पत्नी को 500 यूएस डालर दे, जो उसके निजी खर्ज के लिए होंगे।
जस्टिस रेवती मोहिते (Revathi Mohite) ढेरे और जस्टिस गौरी गोडसे की बेंच ने ग्रीनकार्ड धारक एक बच्ची के पिता की याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। बेंच ने कहा कि इस मामले में बच्ची के पिता का इरादा नेक नज़र आ रहा है।
मां का बेटी को पिता के स्नेह से अनुचित तरीके से वंचित करना ठीक नहीं है। पत्नी अमेरिका नहीं जाना चाहती है। उसने यह तय कर लिया है। केवल इस आधार पर पिता को उसकी बेटी से दूर नहीं किया जा सकता है।
भारत में पति के खिलाफ जारी तलाक की कार्यवाही बेटी को अमेरिका न ले जाने की अनुमति न देने का वैध आधार नहीं हो सकती है। याचिका में पति ने मांग की थी कि उसकी पांच साल की बेटी को अमेरिका ले जाने की अनुमति देने की मांग की थी।