मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने कहा है कि शारीरिक अंतरंगता की प्रारंभिक अनुमति निरंतर यौन शोषण के लिए लाइसेंस (License to Sexually Abuse) नहीं बनती है।
न्यायमूर्ति निज़ामुद्दीन जमादार (Nizamuddin Jamadar) की एकल पीठ ने बलात्कार के आरोपी एक पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी पूर्व जमानत को खारिज करते हुए यह विचार व्यक्त किया।
न्यायमूर्ति निज़ामुद्दीन जमादार (Justice Nizamuddin Jamadar) की एकल पीठ ने आरोपी को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि अगर इस मामले में जांच तंत्र से जुड़े आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई तो वह जांच में दिक्कतें पैदा करने की कोशिश कर सकता है।
इसके अलावा, वह पीड़ित पर दबाव भी डाल सकता है। क्या संभोग का प्रारंभिक कार्य पीड़िता की सहमति के बिना था, यह नियमित परीक्षण के दौरान सामने आएगा।
हालांकि, पेश किए गए सबूतों और अन्य जानकारियों से कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का स्वभाव हिंसक है। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज करते हुए साफ किया कि उनके खिलाफ आरोप गंभीर हैं। आपको बता दें कि पुणे के खड़की के एक पुलिस अधिकारी पर उनकी ही महिला सहकर्मी ने शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण का आरोप लगाया है।साथ ही,
पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे पिस्तौल दिखाकर धमकाया और…
धमकी दी कि अगर उसने यह बात किसी को बताई तो वह उसकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा। महिला ने इस संबंध में 4 सितंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
इसलिए गिरफ्तारी के डर से याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए हाई कोर्ट (High Court) का दरवाजा खटखटाया। दरअसल याचिकाकर्ता और पीड़िता का विवाहेतर (extramarital) संबंध था।
हाई कोर्ट (High Court) ने कहा, यह न केवल विवाहेतर संबंधों का मामला है, बल्कि उसके बाद यौन शोषण और धमकियों का भी मामला है। राज्य सरकार की ओर से वकील अश्विनी टाकलकर ने कोर्ट को बताया कि इस संबंध में पर्याप्त सबूत हैं।
उन्होंने पीड़िता की मां, बेटे और अन्य सहयोगियों के बयानों को कोर्ट के ध्यान में लाते हुए याचिकाकर्ता के हिंसक व्यवहार और स्वभाव की ओर भी कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया और याचिकाकर्ता की दलील का विरोध किया।