Boycott of Justice Verma swearing-in ceremony: इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकीलों का विरोध प्रदर्शन शुक्रवार को लगातार चौथे दिन भी जारी रहा। देर रात तक चली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की एक आपातकालीन बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि वकील जस्टिस यशवंत वर्मा के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार करेंगे।
वकीलों का तर्क है कि जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी इंटीग्रिटी की शपथ को खंडित किया है, ऐसे में वे दोबारा वही शपथ लेने के योग्य नहीं हैं। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने इस स्थानांतरण को भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का सबसे काला दिन करार दिया।
आपातकालीन बैठक और अहम निर्णय
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी की यह आपात बैठक अध्यक्ष अनिल तिवारी के आवास पर आयोजित हुई, जो देर रात 12:30 बजे तक चली। अनिल तिवारी के दिल्ली से प्रयागराज लौटने में देरी के कारण बैठक मध्यरात्रि तक खिंच गई।
कानून मंत्रालय द्वारा शुक्रवार शाम को जस्टिस यशवंत वर्मा के स्थानांतरण की अधिसूचना जारी होने के बाद वकीलों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। बैठक में यह भी फैसला लिया गया कि वादकारियों के हित को ध्यान में रखते हुए शनिवार, 29 मार्च 2025 से फोटो एफिडेविट सेंटर को पुनः खोल दिया जाएगा। साथ ही, शनिवार शाम 4 बजे वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ एक बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें कार्य बहिष्कार को जारी रखने और आंदोलन की आगे की रणनीति पर चर्चा होगी।
न्यायालय के कामकाज पर प्रभाव
वकीलों के कार्य बहिष्कार के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य बुरी तरह प्रभावित हुआ। यह बहिष्कार लगातार चौथे दिन भी जारी रहा, जिसके चलते चीफ जस्टिस सहित अन्य न्यायाधीश अपने कक्षों में उपस्थित तो रहे, लेकिन वकीलों की अनुपस्थिति के कारण कुछ ही देर बाद वे अपने चैंबरों में लौट गए।
इस स्थिति का सबसे ज्यादा नुकसान दूर-दराज से आए वादकारियों को हुआ, जिन्हें निराश होकर वापस लौटना पड़ा।
बार एसोसिएशन की प्रतिबद्धता
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा कि संगठन न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का यह संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने इस स्थानांतरण को न केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट, बल्कि समूची न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गलत संदेश करार दिया।
बैठक में बार एसोसिएशन के कई अधिकारी और सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित रहे, जिनमें उपाध्यक्ष अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी और महासचिव विक्रांत पांडे भी शामिल थे।
पृष्ठभूमि और विवाद
जस्टिस यशवंत वर्मा के स्थानांतरण का यह विवाद तब शुरू हुआ, जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च 2025 को आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी वापसी इलाहाबाद हाईकोर्ट में करने का फैसला लिया, जिसे बार एसोसिएशन ने सिरे से खारिज कर दिया।
वकीलों का कहना है कि इस तरह के गंभीर आरोपों के बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू होनी चाहिए, न कि उनका महज स्थानांतरण किया जाना चाहिए।
इस मुद्दे पर बार एसोसिएशन ने अपनी चार मांगें भी रखी हैं, जिनमें स्थानांतरण को रद्द करना, जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपना, और उनके खिलाफ आपराधिक जांच शुरू करना शामिल है।
यह घटनाक्रम न केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट, बल्कि देश की न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बड़े सवाल खड़े कर रहा है।