कोलकाता : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव शुरू होने में अभी एक पखवाड़े से भी ज्यादा का वक्त बचा है लेकिन महीनों पहले से ही यहां बीजेपी और टीएमसी के बीच सीधी टक्कर देखी जा सकती है।
बीते लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद बीजेपी भी पश्चिम बंगाल में ‘अबकी बार 200 पार’ जैसे नारे दे रही है तो वहीं टीएमसी में अभी भी भगदड़ की स्थिति है।
एक-एक कर ममता के सेनापति उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं लेकिन इसके पीछे की भूमिका लिखी है मुकुल रॉय ने। मुकुल रॉय ही वह शख्स हैं जो कभी ममता के नंबर दो माने जाते थे लेकिन बीजेपी के लिए बंगाल में ब्रह्मास्त्र से कम साबित नहीं हो रहे हैं।
पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय बंगाल में बीजेपी के चुनावी अभियान की हर कड़ी से जुड़े हुए हैं। संभव है कि राज्य में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की रेस में अपना नाम न आने से वह नाराज भी हों लेकिन अभी तक उन्होंने यह जाहिर नहीं किया है।
उलटे वह बीजेपी के लक्ष्य ‘अबकी बार, 200 पार’ के नारे को सच बनाने में जुटे हुए हैं। बता दें कि पश्चिम बंगाल में 291 विधानसभा सीटें हैं।
रॉय ने अपना राजनीति करियर यूथ कांग्रेस के साथ शुरू किया था। उस समय ममता बनर्जी भी इसका हिस्सा थीं।
जब साल 1998 में ममता बनर्जी ने ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की थी, तो उस समय मुकुल रॉय भी इसके संस्थापकों में शामिल थे। इसके कुछ सालों बाद ही मुकुल रॉय दिल्ली में टीएमसी का चेहरा बनकर उभरे।
साल 2006 में उन्हें पार्टी महासचिव बनाया गया और वह राज्यसभा भेजे गए। यूपीए-2 सरकार में वह रेल मंत्री रहे।
हालांकि, मुकुल रॉय के पास मंत्रीपद ज्यादा समय के लिए नहीं रहा क्योंकि तृणमूल कांग्रेस सितंबर 2012 में यूपीए से अलग हो गई थी।
ममता और मुकुल रॉय के बीच तनातनी तब बढ़ी जब रॉय का नाम शारदा घोटाले और नारदा स्टिंग ऑपरेशन में आया।
सितंबर 2017 में मुकुल रॉय के तृणमूल कांग्रेस से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद नवंबर में रॉय ने औपचारिक तौर पर बीजेपी की सदस्यता ले ली।
इसके बाद से ही मुकुल रॉय बंगाल में बीजेपी की जमीन मजबूत करने में जुट गए। उन्हें बंगाल की राजनीति में बीजेपी का ‘चाणक्य’ कहा जाने लगा।
साल 2019 में लोकसभा चुनावों में पार्टी को 18 सीटों पर मिली जीत का श्रेय भी उन्हें ही दिया गया। मुकुल रॉय की वजह से ही कई टीएमसी नेता बीजेपी में शामिल हो गए।
इनमें उनके बेटे और विधायक सुब्रांगसु रॉय, सोवन चटर्जी और सब्यसाची दत्ता, सुनील सिंह, विश्वजीत दास, विलसन चंपमरी और मिहिर गोस्वामी शामिल हैं।
इतना ही नहीं उन्होंने तृणमूल के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी और जितेंद्र तिवारी को भी बीजेपी में लाने में अहम भूमिका निभाई।